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सोमवार, 17 दिसंबर 2012

दुआओं से दामन तेरा आबाद होगा अब भी ,
रहगुजर पर टिकी होगी खामोश नजर तेरी अब भी ,
आसमां से टूटे तारों से आज भी मेरी खैरियत ही चाही होगी ,
तभी तो मैं हालत-ऐ -जुल्मत में रोशनी की तरह आबाद हूँ ,
तू मेरी माँ है ,जिसके मुकददर की इबारत हूँ में अब भी :::::
रात की सतह पर उभरे हुए तेरे चेहरे पर सादा सी नजर ,
आज भी मेरी आरजुओं के एवान सजाती है ,
चंद घडियों के लिए ही सही मेरी इबादत असर ले आये तो सही,
कि, खुदा बक्श दे मेरी माँ मुझे पल भर के लिए ही सही ,
तेरी जागी हुई रातों का सिला दे दूँ मैं तुझे ,
रूहे तक्सीदो वफा (पवित्र आत्मा) तेरे सजदों में झुका है मेरा वजूद तमाम अब भी .........
संगीता

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

कोशिश

आज फिर हसरतों ने दिल में समाने की कोशिश की है :::::::
आज फिर पीर ने सागर सी गहरे में उतर जाने की कोशिश की है,
लहरों की मानिंद चाहतों ने परेशां कर रक्खा है ::::::::::::::::
की डूबे हुए साहिलों पर ठहरने की कोशिश की है::::::::::::::

अब भी जिन्दा हैं मेरी पलकों की गलियों में यादों के कुछ हंसीं मंजर,
अब भी अंगड़ाई लेते हुए ख़्वाब गाहे-बगाहे चले आते हैं ::::::::::::::::::::::
अब भी सुकून तलाशते हुए खो जाती हूँ उस रह्गुजर में ::::::::::::::::::
कि जिन्दा होने की तस्कीन कर लेने की कोशिश की है:::::::::::::::::::::::

 बार-बार गर्दन झुकाई है, बार-बार तलाशा है वो चेहरा दिल के आईने में::::::::::::::
आसमां के सितारों को अब भी कई रातों जाग-जाग कर गिना है मेंने ::::::::
फिर से अश्कों को अपने दामन में समेटा है मैंने :::::::::::::::::::::
आज फिर मुस्कानों से जख्मों को सीने की कोशिश की है ::::::::::::::::::::::::::::::::

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

त्रासदी आजादी की

                                      

  • गहन वेदना त्याग तपस्या एवम अनगिनत आहुतियों पश्चात् आजादी का जन्म हुआ,, 
  • जयघोष का आल्हादित और प्रफुल्लित नारों से आसमान गूंज उठा , 
  • आज उम्र है पैंसठ की और गाथा क्या कहूँ, 
  •  अनुभवों की झुर्रियों में छिपी है छले जाने की पीड़ा,
  •      रोज सुबह का सूरज मेरे सोये मन में नई आशा जगा जाता है ,
  •      पंछी के कलरव गीत नए बन जाते हैं ,पर .......
  •  
  • भूखा बचपन, बिकती कन्या ,और सिसकती तरुणाई है  ,
  • ये कैसी है नई सुबह, और ये कैसी संचार है :::::::::
  •  
  •        वर्तमान के विकट  स्वरूप में दुराचार की आंधी है,,
  •        शास्वत मूल्यों की तिलांजलि है , नेताओं की चांदी है:::::::::
  •  

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

हाँ भोर हो गई

         क्षितिज के झरोंखो से किरणों के  झांकते ही फज़ा रोशन हुई ,
             रास्ते  मुस्कुराने लगे  ,रवि  ने समेट  ली  नर्म कोहरे  की चादर ,
         दरख्तों के जवां हौसले बुलंद होने को हैं ;
         पक्षियों के गीत आँगन मे गूंजने लगे 
         रहत की रहस्यमय  चरमराहट से खेत भी गुनगुनाते है ;
          ओस का आँचल ढलका रोशनी के हजार दिए खिलखिला उठे ;
                        हाँ भोर हो गई  : लो भोर हो गई                      

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

विविधा के साथ "जिंदगी का सफ़र "

जिंदगी की हर अदा से यूँ तो मैं वाकिफ नहीं हूँ ;फिर भी जिंदगी मुझसे और में जिंदगी से अजनबी नहीं हूँ::::::::

इस सफ़र के मीलों फासले तय कर लिए मैंने ;जिंदगी हासिल हो जहाँ वो मुकाम हासिल नहीं हैं ;
"मैं और तुम में" हमने बाँट लिया इसे ;मगर जिंदगी ने इसे कभी कबूला ही नहीं है :::::::::::::::::::::::;

                                 इसने दुनिया के तजर्बों की शक्ल में जो भी दिया है ,मुझे;
                                  उसमें उम्मीदों की झलक ख़्वाबों की शहनाई भी है ;
                                 बोझल से मुस्तकबिल की रोशनी भी है ;
                                  कबूला है मैंने हर शक्ल में इसे ,पर लौटाया कुछ भी नहीं है ::::::::::::::::::
                                   

                                  तमाम उम्र वो राहें मेरे ज़ेहन  में घुमती रहेंगी ;
                                  जिन राहों से मायूसी से तो कभी उम्मीदों से गुजर की है;
                                  अपनी खुशियों को और अपने ग़मों को तक़दीर से बाँध रक्खा है ;
                                  मानो कभी जिंदगी के फ़लसफ़े को समझा ही नहीं है::::::::::::::::::::::::::::

जिंदगी की हर अदा से यूँ तो में वाकिफ नहीं हूँ ;फिर भी जिदगी मुझसे और में जिन्दगी मुझसे अजनबी नहीं हूँ
                                                                                                                   "संगीता "

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

मैं और खुदा

              खुदा और मेरे बीच इतना फासला क्यूँ है ;
              उम्र भर अश्क पीने की ये सजा क्यूँ है ??
        
              लहरों की हलचल में छिपा है दरिया का दर्द 
               हर लहर से पूछ साहिल से पूछ आबे-खां  से पूछ ::::::::::::::
                बार-बार बात-बात पर मुझे झकझोरता क्यूँ हैं ?

                चलने का हौसला ही नहीं है तो दूरी का ग़म सताता है  ;
                   कदम दर कदम मंजिल का पता पूछता क्यूँ है ?

                  महफूज था दर्द मेरे सीने में जो गुजर गया सो गुजर गया ;
                   फिर उसकी याद रह-रह कर दिलाता क्यूँ है ?
                          
                           

शनिवार, 29 सितंबर 2012

बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,

किसी अपने के खो जाने से यह दुनिया नहीं रुका करती है ,
यही अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हूँ ,

घर के तमाम कोनों  में बिखरा पड़ा है वजूद उसका ,
फिर भी जाने कहाँ-कहाँ ढूंढने की कोशिश किये जा रही हूँ ,

हर रहगुजर ,हर मोड़ पर मानो मुस्कुराता हुआ मिल जाएगा वो ,
बार-बार उसे पुकारती गुजरती जा रही हूँ ,

माँ की आँख का तारा था वो मेरे सूत से बंधा था वो ,
जाने कैसे गाँठ खुल गई कि  आज तक नहीं समझ पा रही हूँ में,


बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

जिंदगी  दर्द के सहरा से  गुजरती  रही तनहा-तनहा ;
साँस  दर साँस उम्र घटती रही यूँ ही  तनहा-तनहा :
हंस  कर गुजर जाती तो अच्छा होता ,ग़म  तो ये है ;
कि  हर रत शबनम तरबतर करती रही तनहा-तनहा :
मैंने  काटी  है सजा किसी और के गुनाहों की ,तब भी गिला नहीं ;
 जो मिला हंस कर लिया ,माना कि ,
समय कम था जिंदगी के पास  जितना था हंस कर गुजर गया तनहा-तनहा :
हर  तस्वीर बिगड़ती  गई   सुखनवर बनूँ इस कोशिश में ,
तमाम उम्र  इक ख़ुशी के इन्जार में ,,
अश्क तमाम दामन में समेटे खत्म हो गई तनहा-तनहा 

सोमवार, 4 जून 2012

आदरणीय ब्लॉगर साथियों ,
                     मैंने अपने ब्लॉग का नाम परिवर्तित किया है अब आप इसे" विविधा" के नाम से जानेंगे और "मुख्य URL  है www .pramey 1.blogspot.com "  आप सभी आमंत्रित हैं मेरे ब्लॉग पर पोस्ट की समीक्षा हेतु। 
                                                                                                                                      सादर संगीता 

रविवार, 3 जून 2012

है लगाव जिंदगी से सभी को ,
है ख़याल हुस्न का सभी को;
सुलग रहा है अलाव इश्क का धड़कनों में आज भी ;
यही तो पहचान है जिन्दा होने की दिल की अभी भी ::::::::::::::::::;;


वो चित्रकार आज भी मसरूफ है ज़माने की फ़िक्र में ;
अब भी उकेर रहा है जिंदगी ;
रंगीं कर रहा है जमीं के कैनवास पर ;
मानो की जता रहा हो की गम गुजर जाया करते हैं बीत जाया नहीं करते::::::::::::::::::::::::::::;;;;;;;


मौत कभी जिस्म को आया नहीं करती ,
 धडकनों के थमने से अरमाँ नहीं मरा करते ;
 माना कि  लब खामोश हैं सभी के अभी ;
पर यूँ ही एलान मरा नहीं करते :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::


लहू बहा और जम गया जंग के मैदान में फिर भी ;
वह गलियों में,बाजारों में उतर आया है नारा बनकर;
शोला सा दहका है सर उठाया है हमने फिर अभी ;
ये वो जुनूँ  है जो संगीनों से डरा नहीं करते:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::;  
                                                                                                                           

बुधवार, 23 मई 2012

आदरणीय ब्लोगर साथियों ,
         में अभी भी अपनी समस्या से छुटकारा नहीं पा सकी हूँ ,गूगल सर्च के माध्यम से में अपने ब्लॉग के अनुवाद पृष्ठ पर पहुंचती हूँ तथा वहाँ  signin  कर डेशबोर्ड  पर फिर वहाँ  से  पोस्टिंग पर बस इतना ही कर सक रही हूँ ,अपने ब्लॉग पर या आप के ब्लॉग पर टिपण्णी करने में  अभी भी असमर्थ हूँ । सभी प्रयास कर चुकी हूँ ,कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हुआ ,क्या इस समस्या का कोई हल है?
                                                        सादर 

मेरा मन

जीवन में उत्सवों के रंग भरता ;मेरे जीवंत होने को प्रमाणित करता ,
थमा देता है साहस की लाठी मेरे हाथ ;
ये मेरा मन मुझे कभी हारने नहीं देता ..........
गुजारी हुई यादों की तस्वीरें ,आने वाले कल के  सपने,काल
समय सदा ही उकेरता रहता है मेरे अन्तर्मन में ;
ये मेरा मन मुझे अभी मायूस नहीं होने देता .......................
जीवन के आरोहों-अवरोहों में ,खो जाते हैं विचार जिन्दगी के शोर में ;
समेट लेता है मुझे अपने आगोश में , ये मन मेरा मुझे कभी एकाकी नहीं होने देता.....................
यादों के गलियारों से गुजरते हुए ,गुजरे हुए हादसों को अध्याय सा सहेजते हुए ;
अनुभवों की नींव से फिर निर्माण करता ;
मेरा मन मुझे सहलाता और संवारता रहता है....................
नियति के सधे हुए  क्रम में ,निर्माण और निर्वाण के काल क्रम में ,
जब मिटने लगतीं हैं पानी में लिखी इबारतें,
तब हौसला देता मेरा ये मन मुझे कभी बिखरने नहीं देता ..................
जीवन में उत्सवों के रंग भरता मेरा ये मन मेरे जीवंत होने को प्रमाणित करता,
मेरा मन मुझे कभी हरने नहीं देता ....................
                                                     सादर 

सोमवार, 21 मई 2012

अभी तक में अपने ब्लॉग पर क्लिक नहीं कर सकी हूँ ,व्यक्तिगत तिपानी नहीं कर सक रही हूँ ।सदा की बीते हुए लम्हों के गुजरने की व्यथा,शास्त्रीजी ,की सुन्दर रचना ,यादों पर भावों के मधुर संयोजन,मेरी धरोहर पर सार्थक   अभिव्यक्ति ,जीवन के गलियारों में स्वयं को तलाशती भाव की सुदर प्रस्तुति ,नीम निम्बोरी पर सामयिक सार्थक चिंतन ,रेत  के महल पर शिल्पाजी की प्रतीक्षा रहेगी ,मधुर गुंजन पर मधुजी का जीवन की आप धापी से कुछ पल अपने लिए चुराने का प्रयास ,संध्या शर्मा जी द्वारा समयिक पोस्ट,ललित शर्मा जी का सार्थक मनोहारी चित्रण,नई पुरानी  हलचल पर यशवंत माथुर जी ले शानदार लिनक्स,अनुपमाजी    द्वारा जीवन की भावपूर्ण व्याख्या ,राजेश कुमारी द्वारा रचना में समय के कुठाराघात तथा समाज की विक्रितीयों की संवेदनशील पोस्ट,experssion पर सुन्दर कविता,तथा काव्य संसार पर संवेदनशील रचना ,
आप सभी की रचनाओं से में प्रभावित हूँ तथा आप सभी का आभर कि आपके लेखन के हर पक्ष से मेरा परिचय हो रहा है ।अच्छा फिर मिलेंगे...................
अपने लिए पलों को चुराने का 

शुक्रवार, 18 मई 2012

आप सभी की रचनाएँ बहुत अच्छी हैं और सारगर्भित हैं ,क्षमा करें व्यक्तिगत आपके  ब्लॉग पर पहुंच कर टिपण्णी करने में असमर्थ हूँ|

गुरुवार, 17 मई 2012

ब्लॉग तक पहुँचने का प्रयास जारी है । अभी तक असफल हूँ ।
सादर ।

बुधवार, 16 मई 2012

सभी ब्लोगर  मित्रों को सादर अभिवादन ,
              आज मुझे आप सभी के सुझाव और मार्गदर्शन  की आवश्यकता है । में विगत तीन दिनों से ब्लोगिंग नहीं कर सक रहीं हूँ , कारण मैं  किसी भी खोज engine द्वारा अपने ब्लॉग को खोज सकने में असमर्थ  हूँ ,गूगल द्वारा अपने डेशबोर्ड पर आप सभी की post  पढ़ सकती हूँ पर टिपण्णी नहीं कर सक रही हूँ ,इसी तरह अपनी  रचना पोस्ट कर सक रही हूँ पर उसे  मुखपृष्ठ पर नहीं देख सक रही हूँ ।आप सभी के मार्गदर्शन की आवश्यकता है । 
                                                                   

Tu Jahan Jahan Chalega - Lata Mangeshkar

शुक्रवार, 11 मई 2012

माँ

                         माँ तुझे सलाम
१ ).  शरद  सी  शुभ   चंद्रिका    शुभ्र  ज्योत्त्सना   ममतामयी::::::::::::
निरभ्र   व्योम   सी   शांत   ,हे   माँ   सदा  ही  पूजानीय :::::::::::
पुष्प   के  पराग  सी   सूर्य   की   उजास   सी ::::::::::::::::::::
चित्रकार   की   तूलिका   सी    नित   नव   कल्पनामयी :::::::::::::::
देवत्त्व   भी    आराधन    करें   दानवों    की    श्रद्धामयी ::::::
 हे   "माँ "    सदा   ही    वन्दनीय    तू   "माँ  " सदा   ही    पूजनीय :::


                                         (२ )  


  अब भी संजोये  रक्खे  हैं मैंने हथेली पर वे लम्हें;
  जब उंगली थामें तुम मेरे क़दमों के साथ चला करतीं थीं ::::::
  मेरे आंसुओं के छंद तुम्हारी हंसी की सरगम में ढल जाया करते थे:: मेरे सपनों की ताल पर तुम अपनी जिन्दगी की सूरत बदल लिया  करतीं थीं :::::::::
कई बार झटके हैं  हाथ मैने ,फिर भी सलामत रक्खे हैं वे लम्हें::::::::::::::::::::::
मुझमें कई बार अपना बचपन तलाशते पाया है तुम्हें :::::::::::::::::::::
अपना वजूद खुद में समेटे हमारी दुनिया के आँगन में::::::::::::::::::::
भुला कर सभी सपने अपने खो जातीं हमारे जीवन उत्सव में:::::::::::::;;;
मेरे हौसलों की उड़ानों में ,मेरी जिन्दगी  की हर लय में :::::
मेरे जीवन के गुजरते सारे आरोहों-अवरोहों के ::::::::::::::::::::::::::
तुम्हारे पूजन ,अर्चन  की ही छाया  तले   हँसते हुए  लम्हें :::::::::::
तन्हाइयों  में भी कभी तनहा होने देते नहीं :::::::::::;;; 
तुम्हारी ममता की खुशबू से सराबोर लम्हें  ::::::::::::::::;;
सदा ही सहेजे रक्खेंगे हम प्यार में भीगे ये  अमोल लम्हें::::::::::::::::::::
 
 


    

बुधवार, 9 मई 2012

हमारा आज

थक चुके क़दमों से नहीं चला जाता मंजिल की ओर,
नहीं गाया  जाता अब जीवन का वैभव गान ..........
भूल चुके अब मनस्थ राग विराग ;
सपनों का जाल अब और नहीं बुना जाता ...
तारों के प्रतिबिम्बा में नहीं खोज पाती अब अपनों को ;
मूक हुआ ह्रदय संगीत ,राग हो चले सभी मौन ;
थक चुके क़दमों से नहीं चला जाता मंजिल की ओर;

बुधवार, 2 मई 2012

जननी तुझे कहाँ पाऊं अब

                                                         
  कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी कैसे पंथ चलूं एकाकी ,
तुझसे स्वर्ग रिझाना सीखा मन की तान सुनाना सीखा ;
मेरी जननी तेरे ये सुर इस दामन में ऐसे भर लूँ ;
देखूं जो दुखियारे मन को बस तेरा में अनुसरण कर लूँ .......................
सुखों की याद आंसू ले आती दुःख दिल को भारी  कर जाता ;
माना मैंने जननी  मेरा नाता तुझसे बस इतना ही था ;
देस पराये जाना मेरा ये तेरा संकल्प ही था ,
इन यादों के बंधन से कैसे खुद को आजाद करूँ में .
 कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने,
सुन उर की व्याकुल धड़कन तुम मेरा हर विषाद  हर लेतीं,
जग के तापों की झुलसन में भी शीतल एहसास करातीं ,
नेत्र प्रतीक्षा में आतुर हों मेरा पंथ निहारा करतीं ,
देवत्व की सी छाया तुम ,क्या में तुझ जैसी बन पाई ?
कौन बताये ............................................................
कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, 
        

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

आदत तन्हाई की

अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
तकदीर के आगे अब पेश नहीं होना है मुझे ;जिंदगी ने तदबीरों से दोस्ती जो कर ली है .....
साहिल पर आकर पलटते देखा हैं सकीना हरदम;छोड़ दिया साहिल ही मैने;
मझधारों की लहरों के साथ चलते-चलते ;हिचकोलों से मोहब्बत हो चली है....
कोई साथ अब यकीं नहीं दिला सकता मुझे ;रातों को ख़्वाबों से किनारा कर दिया मैने;
बेमानी रिश्तों से  महरूम होने की शिकायत ही नहीं है मुझे ;
अजनबी राहों से मोहब्बत हो गई है मुझे......... 
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे   

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

जीवन स्वप्न

मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना .................
मानों दरख्त जीवन के सूख चले मुरझा चले हैं,
बहती हुई नदी की सतह पर ही रहीं हूँ में अब जाना.....
स्वप्न संवर कर भी न संवर सके , 
जीवन को पुकार कर भी न पुकार सके ;
अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
 जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ...........................    

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

ममता एक खूबसूरत एहसास

कैसे भूल सकती हूँ आज भी वह पल ,वह एहसास जो मेरे साथ ता-उम्र बावस्ता  है,
तब तुम मेरे मन के सूने गलियारे में पहचानी सी परछाई के मानिंद चुपके से आये थे .
तुम्हारी कोमल सी पदचाप मेरे वजूद से बिंध गई और तभी मेरा प्रथम परिचय हुआ तुमसे........
हाँ मेरे अंश मेने तुम्हें तभी पहचाना था .
अपने ही चेहरे की लकीरों में तुम्हारा चेहरा तलाशती मैं,
तुम्हारी मासूम से क़दमों की हरकतों से तुम्हारी शरारतों को टटोलती ,
बेकल सी मूक हो तुम्हारी आवाज सुनाने को बेताब मैं,
हाँ मेरे अंश मैने तुम्हें तब प्रथम महसूस किया था ,
नित विविधता से तुम्हारे शुभागमन की बाट जोहती मैं,
तुम्हारी कोमल आँखों में अपनी छवि देखने को बेताब मैं ,
मन के कोरे कैनवास पर तुम्हें विविधता से उकेरती ,
अपनी कल्पनाओं से अठखेलियाँ कराती मैं ,
हाँ मेरा तुमसे सबसे पावन नाता बंधा गया और आज भी ,
मैं उसे ही तो जी रहीं हूँ ....................  

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

तलाश और सुकून

                  हर  शख्स मुकम्मिल जहाँ की तलाश में है व्यस्त,कि..

          उलझी हुई साँसे टूटे हुए साजों पर गीत गा नहीं सकतीं अब ;

         हर तरफ बिखरी हुईं हैं अश्कों में भीगी उम्मीदें ,थके हुए हौसले ,

       कि जी खोल कर अब खुद पर हसाँ भी नहीं जाता ; 

     अब ये आलम है कि gidagidata भी कोई नहीं ,सहन किया इतना कि , 

      थकन से चूर रेंगती हुई  जिंदगी का  बोझ उठाया नहीं जाता ,

  दहलीज पर काई की तरह जम गये हैं वो,नई इबारत लिक्खें भी तो कहाँ अब,

"दिल को अब भी सुकून है कि जिंदगी सिर्फ ज़र-जमीं का पैमाना नहीं,

यहाँ दर्द भी हैं एहसास भी हैं शौक़ भी हैं रवायतें भी हैं;

यह सिर्फ बेतरतीब सी साँसों का खजाना ही नहीं है,

चलो फिर कोई ख्व़ाब बुने नए कल के वास्ते क्योंकि ये ख्व़ाब ही तो असास (नींव)हैं  तहजीबे जिंदगी के ,

हर शख्स  मुकम्मिल जहाँ कि तलाश में व्यस्त है ..........................

 

 

 देश में जीवन मूल्यों कि अवहेलना ,साम्प्रदैकता के प्रचारकों की बढती संख्या ,कन्या वध (कन्या भ्रूण का  भी),

 

 

                                     

मंगलवार, 27 मार्च 2012

हमारा आज

देश किन्हीं सीमाओं से घिरे क्षेत्र का नाम नहीं होता,देश तो वहाँ की आवाम से जाना जाता है, संस्कृति का परिचायक होता है ।आजादी के बाद ऐसे ही कुछ विचार थे आम जनता के और जनता नागरिक की तरह सोचने वाले  नेता चुनती रही और हारती रही। आज यदि हम अपने भारत को देखें तो वह मात्र नेताओं की अठखेलियों की समर भूमि ही तो है।हर राजनीतिज्ञ यही घोषणा तो करता फिर रहा है कि यदि हमारी पार्टी जीती तो  टैक्स कम हो जायेगा ,पेत्त्रोलियम उत्पाद के दामों में कमी की जाएगी,आदि-आदि।नहीं जीते तो फिर इस देश कि आवाम से क्या वास्ता, नेताओं का तो गुजारा हो ही जाता है । कभी-कभी ऐसा लगता है कि क्या हम इस देश के नहीं हो पाए हैं ?बढती अराजकता ,असीमित भ्रष्टाचार ,वोट बैंक कि आढ़ में धर्म के रूप को विकृत करते ये नेता ,यदि देश भक्ति के यही मायने हैं  तो फिर क्या कहा जाये ।जनता मात्र वोट कि तरह गिनी जाती है और हर शख्स अपनी कुर्सी के लालच में बिकने को तैयार है , भूखों मरने के हालत हो गए हैं तभी तो सुरक्षा तक दांव पर लगी है ।जहाँ अधिकार है वहां कर्त्तव्य का आभाव है ,क्या यही है भारत के भाग्य में ?हुकूमत का नशा इस तरह सर चढ़कर बोल रहा है कि ये नेता खुद को परमेश्वर मानने लगे हैं।हम पढ़े-लिखे लोग परिचर्चाओं को सुनकर बहस के मुद्दे तलाशते हैं अपने कर्त्तव्य कि इतिश्री कर लेते हैं।
                पर अब कुछ समय कि ही बात है ऐसा लगता है थोडा वक्त और लगेगा पर आने वाली पीढ़ी यह सब बर्दाश्त नहीं करेगी ऐसा लगता है ?किसी को तो चाणक्य कि भूमिका निबाहनी होगी और भारत का परचम फहराना होगा ।

मंगलवार, 20 मार्च 2012

हम कब होंगे आजाद

न राह नजर आती हैं न मंजिलें ,न रौशनी का कोई मंजर नजर आता है ,
भटक न जाये खलाओं(शून्य)में कहीं ;मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
दफ्न होते जा रहें हैं गरीबों के रूहानी नगमें ;हर जवान आँखे मायूस हैं ,
फजायें शोलों सी बरसतीं हें हरदम;
झुलसे जा रहे हैं मेरे वतन के लोग ,क्यूँ मेरा वतन बेजार नजर आता है,
हर ऊंचे मकां की दहलीज तले;किसी भूखे की खोखली सी सदा गूंजती है;
जीवन आँखें खोल भी न पाए  कि हंसती हुई मौत के क़दमों की आहट गुजर जाती है ;
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है  जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती  बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
 

मंगलवार, 13 मार्च 2012

दायरा

दर्द की हर परिधि के पार जाना चाहती हूँ ,
हर झूठी संवेदना से दूर जाना चाहती हूँ ,
चाहती हूँ तैर जाना जीवन की इस अम्बुधि में ,
किसी व्यथा से अब नहीं  व्यथित होना चाहती हूँ ...
नींद सुख की एक ही सही पर कुछ विश्राम चाहती हूँ...
अन्धकार उर में समेटे जीवन की इस पगडण्डी पर ,
कुछ उजले स्वप्नों से तिमिर को भी हर सकूं मैं,
कोई स्वप्न फिर न छला जाये ;संग कोई चले ,
अब असीमित आकाश में प्राणों के पंख तौलना चाहती हूँ .
जीवन की अंतिम दस्तक पर मृत्यु का यशगान करूँ जब,
 गूंज उठे फिर मुक्ति गीत ,और सृजन की तैयारी हो ,
अमर  ध्येय हो सबका जग में; सफल मनोरथ हों मानस के ,
अपने आराधन से वर में जीवन यज्ञ की शत शत आहुति में ,
तूफानों को मुस्कानों में ;वीरानों को उद्यानों में ,
अपमानों को सम्मानों में ,परिणित कर हँसते -हँसते,
जीवन की इस अम्बुधि से होम करना चाहती हूँ .  
 
 
   

मंगलवार, 6 मार्च 2012

एक निराला फाग मनाएं

                                              
तरल आंसुओं की लड़ियों में भीगे रंग जरा मुस्काएं ,
नीले तारों से मुग्ध हों  उन आँखों का निर्माण करें,
जहाँ  बसें  नित  स्वप्न  अनोखे , उम्मीदों के  सुमन  मुस्काएं ..........
दीप जलें तो धवल तिमिर हो  , मेघों  की  भैरवी  से गूंजे  गगन शिखर की सभी दिशाएं,,,,,
दैव  सांत्वना से आँचल का भीगा छोर फिर मुस्काए ,अब ऐसे वह रंग बनाएं ..........
एक निराला फाग मनाएं,
शयन करे अब चिर निद्रा में मानस मन का ताप ,वेदनाओं का अंत हो भूख करे एकाकी विलाप...........
अपने नेह  दीपों से आलोकित हो  महके जीवन हर  पंथ ,
पीड़ा हों सब संज्ञाहीन  मानवता करे यश गान 
सुर लहरियों से ऐसे सजाएं,एक निराला फाग मनाएं .......
दें असीम साधनों  के उपहार मानस रत्न सजा सहेजें ,
अपरिचित भी मीत  बनें और क्या हम ऐसा चलन चलेंगे ,
अलसाई  सी आँखों में रवि की नई मनुहार जगाएं ,
एक निराला फाग मनाएं ,ऐसा ही एक रंग बनायें........................................
                            होली की असीम शुभकामनाओं  के साथ