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बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

                                     क्यूँ 


क्यूँ, हर अंतराल के बाद दस्तक देते हो 
आजमाने की हर कोशिश करते हो, क्यूँ 
मुझे भी संभलने में खुद को आजमाने में 
तकलीफ होती है ,
ऐ जानते हुए भी 
सिर्फ अपनी तसल्ली के लिए 




रविवार, 14 अगस्त 2016

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं
 जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।
 कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं
कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।।
 बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी
मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं।।
 अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता
 फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं।।
हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं
च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं।।
बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से हम अक्सर।
 मगर घर में जरूरत हो तो रिश्ते बोल जाते हैं।।!!!!