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सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

बीता हुआ

                                बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ,
                                अपने ही किनारों से दूर अब खुद में ही सिमट चली हूँ.
                                माना की स्वप्न संजोये थे मैंने भी कुछ अपने वास्ते ,
                                 उन्हें सजाकर जीवन धन जन्मों के पुण्य ले चली हूँ.
                                 बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ ..............
                                पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख,
                                 कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
                                 स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
                                 जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......
                                 बेमाने .........................................
                                  टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
                                  नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
                                  आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
                                   सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
                                   बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ................               



34 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

पहचाने चेहरों पर
अब अनजाने रंग देख,
कंचन की वेदी पर
कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......

bahut sunder likha hai.

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई

avanti singh ने कहा…

सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ...सुंदर भावाव्यक्ति

Sumit Pratap Singh ने कहा…

लिखती रहिए...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ......bahut hi gahri abhivyakti

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ................

Bahut Hi Sunder ....Skaratmak Bhav

Vandana Ramasingh ने कहा…

आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,

बहुत सुन्दर

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति... प्रेमदिवस की शुभकामनाएँ ..

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट |

vidya ने कहा…

नकारात्मक ही सही...मगर सुन्दर रचना...

सादर.

केवल राम ने कहा…

टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,

निश्चित रूप से सच्चाई को अभिव्यक्त किया है आपने इस रचना के माध्यम से .....! लेकिन नियति के हाथों में तो सभी छले जाते हैं ...!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति

MY NEW POST ...कामयाबी...

Roshi ने कहा…

bahut sunder hriday se nikle bhav.........

मेरा साहित्य ने कहा…

sunder shbdon me saji kavita
uttam
badhai
rachana

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति ....

sushila ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना !

Sadhana Vaid ने कहा…

पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख
कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .....

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं संगीता ! आपकी लेखनी बहुत संवेदनशील और सशक्त होती जा रही है ! शुभकामनायें !

sangita ने कहा…

THANX,,,

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना,खूबसूरत प्रस्तुति

आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
एक ब्लॉग सबका

आज का आगरा

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख
कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .....
jabab nahi ... inn pankityon ka
bahut pyari si abhivyakti!

dinesh aggarwal ने कहा…

खूबसुरत भाव सुन्दर रचना....
बधाई.....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत सुंदर रचना !
आभार !

Jeevan Pushp ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति !
सुंदर शब्दों का मिश्रण !
आभार !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन रचना

सादर

Rajesh Kumari ने कहा…

vaah sangeeta ji bahut sundar rachna badhaai aur doosri badhaai mere 100va follower banne ke liye bahut bahut badhaai.milna julna hota rahega.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अति सुन्दर अभिव्यक्ति......बधाई..


----हां
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......

बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ.......

----जीवन का या परिधि का विराम कहां होता है... न जीवन परिधि का... पन्ने भी कभी बेमानी नहीं होते...न हस्ताक्षर... यही तो रह जाते है...मानव के जाने के बाद....


"यदि आप चाहते हैं कि---
मृत्यु के उपरांत
शीघ्र ही संसार आपको भूल न जाय
तो
पढने योग्य श्रेष्ठ रचनाओं की सृष्टि करें
या
वर्णन योग्य श्रेष्ठ कर्म करें "

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bilkul sangrhneey rachana lagi ....sangeeta ji apne bahut hi achha likha hai ...sadar badhai.

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति !

sangita ने कहा…

Thanx to all of you.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति...

Apanatva ने कहा…

sunder shavd chayan badiya prastuti ha ye hee duaa hai ise hatasha ke mahoul se lekhan aur prabhavit naa ho.....

SM ने कहा…

बहुत सुंदर

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपकी कविता के प्रत्येक शब्द समवेत स्वर में बोल उठे हैं ।.भाव भी मन को दोलायमान कर गया । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Saras ने कहा…

कष्ट तो यह है की यह 'बीता हुआ ' नहीं है ..यह आज भी उतना ही सच है !

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