खामोश सी आँखे सादगी में लिपटी नजर.........
कभी बुने थे उनने चाँद तारों व् बहारों से महकते हिंद के सपने,
देखे थे खुशहाली के ख़्वाब ,,देखे बुलंदियों के सपने...........
वादियों के लहलहाने का बेताबी से था इंतज़ार उसे ,
तीरगी के दामन पर रोज उभरता है एक चेहरा .
खामोश सी आँखे सादगी में लिपटी नजर......
देखे थे कई ख़्वाब उसने हिन्दुस्तान के वास्ते ,
सोचा न था कि दायरों में सिमट जाएगा इंसान का वजूद ......
गुम हो जायेंगी तहजीब-ऐ-जिंदगी मिट जाएगा फुरोगे-जूनून
बेरंग सी तस्वीरों में भी अब नहीं उभरता फनकारों का हुनर,
रोंदी हुई आवाजों के शोर से, कांपते कलेजे को थामें जमीं भी गई है थम .
तीरगी के दामन पर रोज उभरता है एक चेहरा देखे थे कई ख़्वाब जिसने हिन्दोस्तान
के वास्ते...................
लपकती हुई आंधी ,और दहकते हुए शोले कौम का जनाजा निकलने पर तुले हैं ,
मिटा इंसानियत के तकाजे ,हिंद कि तस्वीर बिगाड़ने पर तुले हैं ....
अब तो संभल जाओ वरना सुपुर्दे ख़ाक हो जायेंगे ,
खोज भी न पायेंगे दास्ताँ अपनी दास्तानों में ,
तीरगी के दामन पर रोज उभरता है एक चेहरा
उदास सी आँखें खामोश सी नजर ,देखे थे कई ख़्वाब जिसने हिन्दोस्तान के वास्ते!!!!