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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

शंखनाद

अब कोई प्रार्थना और कोई वंदन नहीं , 
वक्त आया है की अब बुद्धिबल दिखाएँ .
देश का  दुर्भाग्य न बने आज फिर वह राह बनाएं 
अब कोई वार्ता और कोई छल नहीं  ,
आकाश के तारों की भांति टिमटिमाना छोड़ दें ,
आदित्य की पावक ,अनल दुशाला ओढ़ लें 
अमृत की आशा में गरलपान  अब और नहीं 
खो गया विश्वास और भूल चले उल्ल्हास है 
असफल और अकुशल अब इस जगत का व्यवहार है ,
अब कोई प्रार्थना और कोई वंदन नहीं 
आज अग्नि वीणा पर दग्ध कंठ का गान है 
सुप्त जागृत हुआ और मौन मुखरित प्राण है 
छल-छद्म की अठखेलियाँ और नहीं बस और नहीं 
अब नहीं होगा कहीं अवसाद का सम्मान है 
गलते रहें ,बहते रहें,जलते रहें स्वीकार नहीं 
 निर्भीक भ्रष्ट आचरण  का वैभव गान अब और नहीं |  

रविवार, 25 दिसंबर 2011

अभिन्दन नव वर्ष तुम्हारा

           नए वर्ष की असीम शुभकामनायें
                            उम्मीदों के द्वार सजे हैं ,
                            संभावनाओं की राह नई है ,,
                            धवल किरण धर आलोकित हो ,
                            अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा |
                            आशा-यें मन की हों पूरी ,
                            पूरे हों  कुछ स्वप्न अधूरे ,
                            नवल पुंज से परिपूरित हो ,,
                            अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा |
                            साहस  हो जीवन का फिर से ,
                            खुशहाल हो हर नाता फिर से ,
                             हर शाखा पर पुष्प धरें हो ,,
                             अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा ||
                             बचपन का क्रंदन अब न हो ,
                             शोषण ,भूख , आर्तनाद न हो ,
                             परिमल पुष्प खिलें हों पथ में ,,
                              अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा ||
                              हर जाये तम ,शंखनांद हो ,
                              भिक्षुक को भी अंश प्राप्त हो ,
                             मानवता की असीम आसीस धर ,,
                              अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा ||        

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

अन्ना के साथ

आदरणीय अन्ना हजारे जी , भारत में पुनः भ्रष्टाचार के विरुद्ध २७ दिसम्बर को रामलीला मैदान में उपवास करने वाले हैं ,हम सभी को उनके साथ अपनी-अपनी जगह से सहभगिता करनी है

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

तन्हाई

 नयनों का ये सूनापन, थका हुआ तन एकाकी मन ,
          ये ही तो अवलंबन है मेरे एकाकी जीवन धन ....
 जग के भुज बंधन में मैंने देखे अगणित रिश्ते मन के ,
       जीवन के निर्माण पंथ के साथी मेरे थे जो बिछड़े ..
इस जीवन को श्राप कहूँ या समझूँ तप का वरदान  
      नयनों का ये सूनापन ..................................
टूटे सपनों की बस्ती में मिटती अपनी हस्ती देखी,
  उल्लाह्स खोजती जीवन में ,संवेदना सदा घुटती देखी ..
रिश्तों की जब उष्ण तपिश है ,फिर भी क्यूँ दे रही है सिहरन 
      नयनों का ये सूनापन ,थका हुआ तन अवसादी मन .....
सांसों की नाजुक डोर से रिश्ते सदा सहेजे मैंने 
       कर्तव्यों की बेदी पर स्वप्न सदा बिखेरे मैंने .
पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
         खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है 
नयनों के इस सूनेपन से ,करती हूँ उनका में वन्दन ..........
नयनों का ये सूनापन  थका हुआ तन एकाकी मन ........

बुनियाद

            संस्कार की बुनियाद पर  अनुभवों की इमारत हैं,
               आप यूँ ही गुजरा हुआ वक्त नहीं ,हमारी विरासत हैं,
         आप से ही सीखा है हमने ,आपसे ही जाना है ,
              आपसे ही पहचाना है संसार ने हमें ,आपको ही माना है 
         चेहरे की झुर्रियों में सघर्षों की इबारत हैं 
               जीवन की तपती राहों में वटवृक्ष सी छाँव  हैं आप ..
         जग के थपेड़ों से  सहेजा सदा हमें ,
               कंटक राहों में फूलों सी कोमलता रहें हैं ,
          सागर सी विशालता अपने उर में समेटे,
                स्नेह पगी डगर पर चलना सिखाया है हमें ,
         माना जग के बंधनों से मुक्त हो विलीन हो गये ईश के भवसागर में ,       
              तब भी आप ही साथ थे ,आज भी आप ही साथ हैं |

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

जूनून

हर बला से नजरें मिलाने का हौसला रखते हैं ,
हम तो कयामत तक साथ निभाने का जिगर रखते हैं,,
मुझे न देख अपने जिगर को रख थाम  कर ;
हम तो हद से गुजर जाने का हौसला रखते हैं,
दोस्तों से तो दोस्ती निभाई ही जाती है;हम तो 
रकीबों का भी इन्कलाब रहे बुलंद ये दुआ करते हैं ,
आसमान के सितारों को कभी गिनना नहीं आया हमें ;मगर 
समंदर की लहरों को हर रोज गिना करते हैं .......
फाकों की चिताओं पर इंसान न जले कोई ,
सीने में दोजख के अंगारों को  दहकता  हुआ रखते हैं ,
कई ख़्वाब बुन रक्खे हैं हमने कल के वास्ते,
सगीनों के दौर में भी उन्हें रंगने का हुनर रखते हैं ..
हम वो नहीं जो बेकसी से तबाही के मंजरों से गुजर जाएँ ,
हम तो तीरगी के दामन पर भी इश्क की इबारत लिख जाएँ वो अदा रखते हैं...
औकात में रह तेवर न दिखा हमको ,हम तो सरहदों पर शामें बसर करते हैं,,
कच्छ -ओ-लाहौर तोहफे में दे दिया है तुझे ,लेकिन अब खैरात में कश्मीर न मांग ,
जिद्द पर गर आ जाएँ तो लाहौर में तिरंगा फहराने का जिगर भी रखते हैं.......



      

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

बस यूँ ही

न अपनाया मैंने न जमाने ने मेरा चलन
यूँ ही गुजर गयी साथ-साथ चलते हुए
हमने गुजारी है हम ही जानते हैं कैसे!
तुम भी गुजार दो यूँ ही साथ-साथ चलते हुए

      सुनते हैं की अबकी हवा कुछ गरम है उधर की
दहशत भी समाई है , संगीनों के साये भी हैं
छिप गया आफ़ताब भी वहशत के अंधियारों में
 नजरें भी हैं  इस तरफ कुछ सियासतदानों की

  गम का सफ़र अकेले यूँ गुजारा  नजाएगा,
 काँटों  की चुभन हो,तपिश तेरी बेवफाई की हों साथ
रुस्वाइयाँ हों मेरे सजदों की,ख़्वाबों की चुभन का हो एहसास
हमने तो निबाह लिया इस जिन्दगी के साथ,
 किसी और से तो निभाया न जाएगा

  हर आंसू कुछ कहता है अगर समझ सको तो
ख़ुशी में राहत का एहसास कराता,गम में हर पल साथ निभाता
 यूँ ही न बहाओ कुछ जतन करो इनका
पलकों में ही बसर करने दो दामन में सहेज रखो
जब कहीं कोई नहीं होता तब यही तुम्हें बहलाता है
हर आंसू कुछ कहता है गर समझ सको

                     
            

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

बेटियां

आज सभी लोग कुल दो बातों पर ही चर्चा करते हैं, एक भ्रष्टाचार और दूसरा कन्या भ्रूण हत्या | भ्रष्टाचार तो 
नेता ही हटा पायेंगे | पर कन्या भ्रूण को बचाना तो हमें ही है | हमारा सामाजिक विन्यास पुनः नए सिरे से 
विन्यासित होने का इंतज़ार कर रहा है | बेटियों की चाहत सिर्फ ३५% परिवारों में है, शेष ६५% आज भी बेटी को बोझ ही समझते हैं क्योंकि उसे तो एक अन्य परिवार में जाना ही है |  हमें तो उनसे सहारा किसी भी तरह का नहीं मिलना है | फिर क्यों उसे जन्म लेने दिया जाये | और अब वर्तमान स्थितियाँ  इतनी विकृत हो गयी हैं, लिंग अंतर इतना ज्यादा है की समझाइश का समय भी नहीं है | हाल ही में महाराष्ट्र में "मिशन साइलेंट ओब्ज़ेर्वेर" के तहत कोल्हापुर  की सभी सोनोग्राफी मशीनों को कलेक्टर के आदेशानुसार एक सर्वर (कम्प्यूटर) से कनेक्ट कर उनके द्वारा 
किये जा रहे परीक्षणों का अवलोकन किया गया तथा जिन मशीनों से लिंग परीक्षण किये जा रहे थे उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए | लिखने का तात्पर्य यह है की जब तक  लोगों में सजा का भय न हो तब तक किसी भी तरह के सकारात्मक सुधार की गुंजाईश नहीं रहती है | हर परिवार में एक कन्या का पालन पोषण अनिवार्य कर दिया जाये और यदि इसमें किसी तरह की लापरवाही हो तो उस परिवार हेतु दंड का प्रावधान हो | यदि आज भी नहीं  चेते तो  फिर  समाज   में मानसिक  विक्र्तियों का पनपना नहीं रोक पायेंगे | यह हमारा कर्त्तव्य भी है की साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से प्यार  से, समझाइश से इसे समाज का सर्वथा स्वीकृत सत्य बनाना है | अंततः बेटियों को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका और जिम्मेदारी माता की है जो अपने को कभी कमजोर न समझे और न ही जोर 
जबरदस्ती  के आगे घुटने टेके और सबसे महत्वपूर्ण बेटे का लोभ त्यागे  .................... |  

बुधवार, 30 नवंबर 2011

रिश्तों की महक

रिश्तों के बारे में जब भी सोचते हैं यादों की सुनहरी झलकियाँ मानस पटल पर उभर आती हैं, ऐसा तभी होता है जब रिश्तों को जिया जाता हो सिर्फ निभाया नहीं जाता हो...हमारे दुखों का कारण साधनों की कमी नहीं है दुखों का कारण रिश्तों को न समझना है.....आज हर इन्सानकिसी न किसी कारण से अवसाद ग्रस्त है क्योंकि हम अपनी   जिजीविषा  खत्म करते जा रहे हैं ,हमारे जीवन की आतंरिक बनावट  अब ऊचाई मापक हो गयी है, हम सिर्फ अनुसन्धान करने लगे हैं, जीवंत हो हर पल अतः  जीवन मूल्यों को पुनः निर्धारित करना ,तथा उन्हें नूतनता ,कमनीयता प्रदान करनी होगी ,औरों से,
अपेक्षा न रख अपना मूल्यांकन करें की हमारे करने के लिए क्या है ?जितना ऊंचा उठेंगे उतने एकाकी होते जायेंगे उंचाई के साथ-साथ विस्तार भी जरूरी है किसी को साथ लें या किसी के संग  चलें. संवेदनशीलता साथसाथ  सपनों  के संसार को भी मूर्त रूप  दें .
        अनुसन्धानकरते हुए मानव धर्मं की अनुभूती भी करें और फिर रिश्तों की महक में खो जाएँ........................ 

रविवार, 27 नवंबर 2011

कविता की रचना

                     दर्द जब परिधि से बाहर आये तो कविता बनती है,
             कोई गीत जब होंठों पर आ जाये तो कविता बनती है,   
             कोई जब सपने सजाये तो कविता बनती है,
             फूलों में रंग और महक हो तो कविता बनती  है, 
              सपनों में उमंग हो,तो कविता बनती है.... 
               सृजन जब संस्मरण बन जाये तो कविता बनती  है, 
                प्यार का सावन जब लहलहाए तो कविता बनती है, 
                 वेदना की कड़ी धूप में जब स्वप्न झुलस जाये तो कविता बनती है...............
                  शरद के बाद बसंत जब आये तो कविता बनती है 
                 और आंधियां झोंक दें जब आँखों में धुल तब कविता बनती है.......... 
             किसी शिशु की किलकारी गूंजे  तो कविता बनती है
              जब आर्तनाद करने लगे श्मशान का सन्नाटा तो कविता बनती है............................
                         

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

२६/११ मुंबई

"वो ख्वाब था जो बिखर गया यूँ" उस शाम न जाने  कितनी माओं के ख्वाब टूट गये, जो घर पर बेटों का इन्तजार  करतीं रहीं, उस शाम जवानों का जोश रास्तों पर लहू बन बह रहा था.
आखिर  क्यों हर भीषण तबाही के बाद ही सजग होने की कोशिश की जाती है? सिद्ध हो गया की हम देश से पहले हैं. नहीं तो सीमा पर सजग रहने वाले सिपाही भी दुश्मन को पहचान नहीं पाए यह तो नहीं होना चाहिए.....कोई तो बात रही होगी जो मछुआरों के  जानकारी देने के बाद भी हमारे प्रहरी आने वाली उस विभीषिका की पदचाप  भी न सुन सके जिसकी गूँज न जाने कितनी सदियों सुनाई देगी.....

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

लोकतंत्र का थप्पड़

आज का मुख्य समाचार यही था,की जानी मानी हस्ती को एक साधारण व्यक्ति ने थप्पड़ मारा,यह वास्तव में एक निंदनीय कृत्य है जनसाधारण की माने तो यह हिंसक प्रवृति है पर जब उस अकेले व्यक्ति पर सभी ने हाथ उठाया तब वह कौन-सी प्रवृति थी?
   सवाल यह  है की यह निंदनीय कृत्य क्यों हुआ जो नहीं होना था, यह दुबारा न दोहराया जाये इसी लिए अब जागना और जगाना जरुरी है, साथ ही शासक वर्ग को यह समझना जरुरी है की  यह हिंसक प्रवृत्ति शायद निरंतर कुशासन और भ्रष्टाचार की ही प्रतिक्रिया है....  

बुधवार, 23 नवंबर 2011

२६/११ मुंबई बिखरे ख्वाब

26/11 in pictures: Sixty hours of terrorवो ख्वाब था जो बिखर गया यूँ,
वो अरमान था जो झुलस गया यूँ 
             ये बेवजह क़ुरबानी क्यूँ?
खाक हुआ सुकून उन दहकती लपटों में
   थम गईं सासें झुलसी हुई रातों में
ख्वाबों के गुलिस्तान के रंग लहू हो गये
     बीत तो गये वे दिन,गुजर जाते नहीं क्यूँ;
वो ख्वाब था जो गुजर गया यूँ

शनिवार, 19 नवंबर 2011

हम भारत के भाग्य विधाता

१५ अगस्त १९४७,२०० वर्षों की गुलामी से हमारा देश आजाद हुआ, हम आज भी इस आजादी के लिए शहीद होने वालों की वीरगाथाएं सुनते-सुनाते हैं और गर्वित होते है  के  हम देशभक्त हैं. किन्तु लगातार बिगड़ते हालातों में विगत १५-२० वर्षों से हर मध्यमवर्गी यही सोच रहा है की क्या इसी को आजादी कहते हैं? विभाजन के मृतकों की कब्र पर हम आज भी जाती और धर्मं  के नाम पर लड़ रहे हैं. २जून १९४७ को जब देश के विभाजन का फैसला होना था तब जिस हस्ती की एक हुंकार पर सारा देश विभाजन के विरोध में एक हो  जाता वह आवाज मूक थी, उसका मौनव्रत था, उस दिन सोमवार जो था, और फैसला हो गया. समझ में नहीं आता की हर वर्ष हम आजादी का जश्न मनाएं या बंटवारे की मौतों का मातम,......
देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु लगातार सरकारों द्वारा रोजगार,कृषि,शिक्षा,स्वस्थ्य की बड़ी-बड़ी योजनाओं को लागु किया गया किन्तु इन क्षेत्रों में हुए विकास की बानगी देखिये..... शिक्षा है - शाला भवन,शिक्षक नहीं ; स्वास्थय विभाग है - दवाइयां नहीं; डॉक्टर हैं - गाँव में (देश की ८०% आबादी) जाते नहीं, गोया ग्रामीण बीमार पड़ते ही नहीं; उन्नत कृषि योजना तो है पर लाभ लेने का आधार है- कर्ज. सरकार साहूकारी की परंपरा पर कायम है और किसान आत्महत्या की; बेरोजगारों की दौड़ सिर्फ रोजगार कार्यालय की अंतहीन कतार तक. 
देश कोई भी हो युवा उस की ऊर्जा, ताकत होते हैं. हमारे देश के हालात ये हैं की ३ करोड़ युवा काम की तलाश में अपने मूल निवास से पलायन करने को मजबूर हैं. बिना जड़ों के ये पोधे शायद ही कभी पूरी तरह फलें फूलें. अर्थात स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित उपयुक्त रोजगार लगभग नहीं के बराबर है.
बीपीएल, एपीएल सर्वेक्षण के आधार पर मुफ्त अनाज, मुफ्त आवास, मनरेगा आदि योजनाओं के भ्रष्ट कार्यान्वयन से मरणासन्न गरीबों को कृत्रिम श्वसन से सिर्फ जीवित रखा जा रहा है, ताकि योजनाएं चलती रहें, विकास हो या न हो. ये है भारत की विकास यात्रा.
सारांश ये है की देश अंग्रेजों से स्वतंत्र हो गया पर गुलाम हम आज भी हैं, भ्रष्टाचार के. और यही वजह है की गाँव, शहर दोनों जगह समेकित विकास नहीं दीखता. तथाकथित विकसित शहरों का प्रदुषण और शोर हमारे लिए विकास का पर्याय बन गए हैं. 
सही मायनों में इस देश के आम आदमी के आजीवन जी-तोड़ संघर्ष के भरोसे ही ये देश चल रहा है.

बुधवार, 16 नवंबर 2011

संस्कार और हम

  हमारे  सामाजिक विन्यास को संजोये रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने जीवित एवं स्वर्गगामी रिश्तों के मध्य रिवाजों व रस्मों की श्रृंखलाएं बना राखी हें, उन्हें आज भी उसी तरह निभाना कितना सही हे ! वो वक्त और था जब  हमारी  जानकारियों  दायरे भी  सीमित थे जो बता दिया जाता था उसे ही करने के लिए हम बाध्य थे. किन्तु आज जब शिक्षा का स्वरुप बदल गया हे, और हर कार्य के करने के पहले आज की पीढ़ी क्यों?  जरुर पूछती हे,और जो सही लगता  हे उन्हें, उसे ही सही  और  बहुत  सम्मान   के साथ निभाती हे. उनका तरीका व्यवहारिक और भावनात्मक  हे हमें उनका सम्मान करना चाहिए. हमारा जोर-जबरदस्ती का तरीका उन्हें हमसे और हमारे संस्कारों से दूर कर देगा ................

रविवार, 13 नवंबर 2011

दायरे उम्र के

    एक उम्र गुजारी हे एहसासों के साथ,
           ख्वाबों के साये में,चाहतों के दामन में
           जिंदगी के खुशनुमा लम्हों केसाथ
           एक उम्र गुजरी हे अपनों के आशियाने में
            इस  उम्र के बाद.......................
                                हर एहसास परे हो जाता हे, ख्वाब दफन हो जाते हें
            चाहतें दम तोड़ देती हें
            अब न दिल  नर्गिस की महक से लहकता हें,न ख्वाब किसी की यादों से महकते हें
            लफ्जों की रोशनी  धुंधली सी हो जाती हे, दायरे खुद ही सिमट जाते हें
            सबों से भी अब शिकायत नहीं होती, वक्त की सिम्फनी पर कोई भूली हुई धुन याद नहीं आती
            उम्र के इस मोड़ पर समझ का दायरा बढ़ जाता हे,
            हर एहसास परे हो जाता हे, चाहतें दफन हो जाती हें,
            ख्वाब खो जाते हें,वक्त थम जाता हे ...............
  

                           

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

विकलता या अहंकार

सागर की लहरों को क्या समझूँ  में,तुम्हारी विकलता या तुम्हारा उल्लास.
स्वयं में सिमट कर तुम तुम न रहे,तुम में बन गए ,
इस स्वयं को क्या समझू में तुम्हारी विकलता,या खुद तुम्हारा  ही उल्लास,
भावनाओं को आधार बना तुम बढ़ते चले नए क्षितिज की ओर ,
जहाँ था तुम्हारा निज स्वप्निल संसार .
पर क्या कर पाए रंगों से सुरंजित अपने मधुर स्वप्नों को साकार ;
तुम्हारी इस प्रेरणा को क्या कहूँ में तुम्हारी चंचलता या,तुम्हारा अहंकार


बुधवार, 9 नवंबर 2011

PRJATANTRA KA MAJAK

Bharat ki samsya itani hi he ki har vyakti desh ke vikas me ho rahe vyavdhan ke liye ek dusre par dosharopan kar rha he, isase sangharsh ki sthti nirmit ho gayee he.Prajatantra majak ban gya he.Rashtriya muddon par vibhinn dalon ki asahmati se desh me aam aadmi ka jiwan asthir ho gya he.

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

ADHIKAR KA HANAN

aaj phir berojgar hone ka dar shikshakon par bhari pada.ye kesi vyavstha he ki GURU ka pad bhi simaon me bandh diya gaya he.shasan ka arth hi badal gaya he,8000,10,000, 12000Rs. prativyakti aaye paryapt he to fir ye neta kyun apna wetan-bhatta badha lete hen.shikshakarmi-1,-2,-3 ka pad kya soch kar banaya gaya he!shiksha ko bhi kam ki tarah dekha jane laga he,ek hi vibhag me ek hi kam ke liye alag-alag payscale usme bhi jamin aasman ka fark he.Yuva shakti ki avhelna karna................................................ 

रविवार, 6 नवंबर 2011

CHETAVANI

Janta ki behali ka karan Berojgari kya kam thi jo ye neta bhrashtachar ke sath-sath mahngai par bhi niyantran nahi kar pa rahe. Hamari peedhi to sahansheel thi, par "vartman" ke virodh ka tarika aar ya par ka he.

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

FUEL PRICE HIKE

THE LATEST HAS EXPOSED THE FACT THAT ALMOST ALL GOVT FUNCTIONARIES HAS CEASED TO WORK. THE GOVERNING CADRES ARE FULL OF NUISANCES LIKE DIGVIJAY SINGH, GADKARI, THAKRE(S) ETC. CAPABLE PERSON(S) IF ANY ARE EITHER W.O. ANY POWERS OR HAVE OPTED OUT OF THE CIRCUS RING.