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बुधवार, 25 अप्रैल 2012

आदत तन्हाई की

अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
तकदीर के आगे अब पेश नहीं होना है मुझे ;जिंदगी ने तदबीरों से दोस्ती जो कर ली है .....
साहिल पर आकर पलटते देखा हैं सकीना हरदम;छोड़ दिया साहिल ही मैने;
मझधारों की लहरों के साथ चलते-चलते ;हिचकोलों से मोहब्बत हो चली है....
कोई साथ अब यकीं नहीं दिला सकता मुझे ;रातों को ख़्वाबों से किनारा कर दिया मैने;
बेमानी रिश्तों से  महरूम होने की शिकायत ही नहीं है मुझे ;
अजनबी राहों से मोहब्बत हो गई है मुझे......... 
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे   

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

जीवन स्वप्न

मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना .................
मानों दरख्त जीवन के सूख चले मुरझा चले हैं,
बहती हुई नदी की सतह पर ही रहीं हूँ में अब जाना.....
स्वप्न संवर कर भी न संवर सके , 
जीवन को पुकार कर भी न पुकार सके ;
अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
 जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ...........................    

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

ममता एक खूबसूरत एहसास

कैसे भूल सकती हूँ आज भी वह पल ,वह एहसास जो मेरे साथ ता-उम्र बावस्ता  है,
तब तुम मेरे मन के सूने गलियारे में पहचानी सी परछाई के मानिंद चुपके से आये थे .
तुम्हारी कोमल सी पदचाप मेरे वजूद से बिंध गई और तभी मेरा प्रथम परिचय हुआ तुमसे........
हाँ मेरे अंश मेने तुम्हें तभी पहचाना था .
अपने ही चेहरे की लकीरों में तुम्हारा चेहरा तलाशती मैं,
तुम्हारी मासूम से क़दमों की हरकतों से तुम्हारी शरारतों को टटोलती ,
बेकल सी मूक हो तुम्हारी आवाज सुनाने को बेताब मैं,
हाँ मेरे अंश मैने तुम्हें तब प्रथम महसूस किया था ,
नित विविधता से तुम्हारे शुभागमन की बाट जोहती मैं,
तुम्हारी कोमल आँखों में अपनी छवि देखने को बेताब मैं ,
मन के कोरे कैनवास पर तुम्हें विविधता से उकेरती ,
अपनी कल्पनाओं से अठखेलियाँ कराती मैं ,
हाँ मेरा तुमसे सबसे पावन नाता बंधा गया और आज भी ,
मैं उसे ही तो जी रहीं हूँ ....................  

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

तलाश और सुकून

                  हर  शख्स मुकम्मिल जहाँ की तलाश में है व्यस्त,कि..

          उलझी हुई साँसे टूटे हुए साजों पर गीत गा नहीं सकतीं अब ;

         हर तरफ बिखरी हुईं हैं अश्कों में भीगी उम्मीदें ,थके हुए हौसले ,

       कि जी खोल कर अब खुद पर हसाँ भी नहीं जाता ; 

     अब ये आलम है कि gidagidata भी कोई नहीं ,सहन किया इतना कि , 

      थकन से चूर रेंगती हुई  जिंदगी का  बोझ उठाया नहीं जाता ,

  दहलीज पर काई की तरह जम गये हैं वो,नई इबारत लिक्खें भी तो कहाँ अब,

"दिल को अब भी सुकून है कि जिंदगी सिर्फ ज़र-जमीं का पैमाना नहीं,

यहाँ दर्द भी हैं एहसास भी हैं शौक़ भी हैं रवायतें भी हैं;

यह सिर्फ बेतरतीब सी साँसों का खजाना ही नहीं है,

चलो फिर कोई ख्व़ाब बुने नए कल के वास्ते क्योंकि ये ख्व़ाब ही तो असास (नींव)हैं  तहजीबे जिंदगी के ,

हर शख्स  मुकम्मिल जहाँ कि तलाश में व्यस्त है ..........................

 

 

 देश में जीवन मूल्यों कि अवहेलना ,साम्प्रदैकता के प्रचारकों की बढती संख्या ,कन्या वध (कन्या भ्रूण का  भी),