अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
तकदीर के आगे अब पेश नहीं होना है मुझे ;जिंदगी ने तदबीरों से दोस्ती जो कर ली है .....
साहिल पर आकर पलटते देखा हैं सकीना हरदम;छोड़ दिया साहिल ही मैने;
मझधारों की लहरों के साथ चलते-चलते ;हिचकोलों से मोहब्बत हो चली है....
कोई साथ अब यकीं नहीं दिला सकता मुझे ;रातों को ख़्वाबों से किनारा कर दिया मैने;
बेमानी रिश्तों से महरूम होने की शिकायत ही नहीं है मुझे ;
अजनबी राहों से मोहब्बत हो गई है मुझे.........
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे