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सोमवार, 17 दिसंबर 2012

दुआओं से दामन तेरा आबाद होगा अब भी ,
रहगुजर पर टिकी होगी खामोश नजर तेरी अब भी ,
आसमां से टूटे तारों से आज भी मेरी खैरियत ही चाही होगी ,
तभी तो मैं हालत-ऐ -जुल्मत में रोशनी की तरह आबाद हूँ ,
तू मेरी माँ है ,जिसके मुकददर की इबारत हूँ में अब भी :::::
रात की सतह पर उभरे हुए तेरे चेहरे पर सादा सी नजर ,
आज भी मेरी आरजुओं के एवान सजाती है ,
चंद घडियों के लिए ही सही मेरी इबादत असर ले आये तो सही,
कि, खुदा बक्श दे मेरी माँ मुझे पल भर के लिए ही सही ,
तेरी जागी हुई रातों का सिला दे दूँ मैं तुझे ,
रूहे तक्सीदो वफा (पवित्र आत्मा) तेरे सजदों में झुका है मेरा वजूद तमाम अब भी .........
संगीता

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

कोशिश

आज फिर हसरतों ने दिल में समाने की कोशिश की है :::::::
आज फिर पीर ने सागर सी गहरे में उतर जाने की कोशिश की है,
लहरों की मानिंद चाहतों ने परेशां कर रक्खा है ::::::::::::::::
की डूबे हुए साहिलों पर ठहरने की कोशिश की है::::::::::::::

अब भी जिन्दा हैं मेरी पलकों की गलियों में यादों के कुछ हंसीं मंजर,
अब भी अंगड़ाई लेते हुए ख़्वाब गाहे-बगाहे चले आते हैं ::::::::::::::::::::::
अब भी सुकून तलाशते हुए खो जाती हूँ उस रह्गुजर में ::::::::::::::::::
कि जिन्दा होने की तस्कीन कर लेने की कोशिश की है:::::::::::::::::::::::

 बार-बार गर्दन झुकाई है, बार-बार तलाशा है वो चेहरा दिल के आईने में::::::::::::::
आसमां के सितारों को अब भी कई रातों जाग-जाग कर गिना है मेंने ::::::::
फिर से अश्कों को अपने दामन में समेटा है मैंने :::::::::::::::::::::
आज फिर मुस्कानों से जख्मों को सीने की कोशिश की है ::::::::::::::::::::::::::::::::