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सोमवार, 17 दिसंबर 2012

दुआओं से दामन तेरा आबाद होगा अब भी ,
रहगुजर पर टिकी होगी खामोश नजर तेरी अब भी ,
आसमां से टूटे तारों से आज भी मेरी खैरियत ही चाही होगी ,
तभी तो मैं हालत-ऐ -जुल्मत में रोशनी की तरह आबाद हूँ ,
तू मेरी माँ है ,जिसके मुकददर की इबारत हूँ में अब भी :::::
रात की सतह पर उभरे हुए तेरे चेहरे पर सादा सी नजर ,
आज भी मेरी आरजुओं के एवान सजाती है ,
चंद घडियों के लिए ही सही मेरी इबादत असर ले आये तो सही,
कि, खुदा बक्श दे मेरी माँ मुझे पल भर के लिए ही सही ,
तेरी जागी हुई रातों का सिला दे दूँ मैं तुझे ,
रूहे तक्सीदो वफा (पवित्र आत्मा) तेरे सजदों में झुका है मेरा वजूद तमाम अब भी .........
संगीता

10 टिप्‍पणियां:

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

ek sachhe dil ki abhivyti vykt ki hai .......

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया आंटी


सादर

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत बढिया

नादिर खान ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति ...

Prakash Jain ने कहा…

bahut sundar

Madan Mohan Saxena ने कहा…

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सुन्दर अहसासों और अल्फाजों के साथ माँ को याद किया है संगीता ! ईश्वर ज़रूर आपकी इस इबादत को क़ुबूल करेगा !

रचना दीक्षित ने कहा…

दिल से निकली सुंदर अभिव्यक्ति.

नए साल की शुभकामनायें.

राहुल ने कहा…

खुदा बक्श दे मेरी माँ मुझे पल भर के लिए ही सही ,
तेरी जागी हुई रातों का सिला दे दूँ मैं तुझे
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यकीनन एक बेहतरीन पोस्ट

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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