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बुधवार, 23 मई 2012

आदरणीय ब्लोगर साथियों ,
         में अभी भी अपनी समस्या से छुटकारा नहीं पा सकी हूँ ,गूगल सर्च के माध्यम से में अपने ब्लॉग के अनुवाद पृष्ठ पर पहुंचती हूँ तथा वहाँ  signin  कर डेशबोर्ड  पर फिर वहाँ  से  पोस्टिंग पर बस इतना ही कर सक रही हूँ ,अपने ब्लॉग पर या आप के ब्लॉग पर टिपण्णी करने में  अभी भी असमर्थ हूँ । सभी प्रयास कर चुकी हूँ ,कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हुआ ,क्या इस समस्या का कोई हल है?
                                                        सादर 

मेरा मन

जीवन में उत्सवों के रंग भरता ;मेरे जीवंत होने को प्रमाणित करता ,
थमा देता है साहस की लाठी मेरे हाथ ;
ये मेरा मन मुझे कभी हारने नहीं देता ..........
गुजारी हुई यादों की तस्वीरें ,आने वाले कल के  सपने,काल
समय सदा ही उकेरता रहता है मेरे अन्तर्मन में ;
ये मेरा मन मुझे अभी मायूस नहीं होने देता .......................
जीवन के आरोहों-अवरोहों में ,खो जाते हैं विचार जिन्दगी के शोर में ;
समेट लेता है मुझे अपने आगोश में , ये मन मेरा मुझे कभी एकाकी नहीं होने देता.....................
यादों के गलियारों से गुजरते हुए ,गुजरे हुए हादसों को अध्याय सा सहेजते हुए ;
अनुभवों की नींव से फिर निर्माण करता ;
मेरा मन मुझे सहलाता और संवारता रहता है....................
नियति के सधे हुए  क्रम में ,निर्माण और निर्वाण के काल क्रम में ,
जब मिटने लगतीं हैं पानी में लिखी इबारतें,
तब हौसला देता मेरा ये मन मुझे कभी बिखरने नहीं देता ..................
जीवन में उत्सवों के रंग भरता मेरा ये मन मेरे जीवंत होने को प्रमाणित करता,
मेरा मन मुझे कभी हरने नहीं देता ....................
                                                     सादर 

सोमवार, 21 मई 2012

अभी तक में अपने ब्लॉग पर क्लिक नहीं कर सकी हूँ ,व्यक्तिगत तिपानी नहीं कर सक रही हूँ ।सदा की बीते हुए लम्हों के गुजरने की व्यथा,शास्त्रीजी ,की सुन्दर रचना ,यादों पर भावों के मधुर संयोजन,मेरी धरोहर पर सार्थक   अभिव्यक्ति ,जीवन के गलियारों में स्वयं को तलाशती भाव की सुदर प्रस्तुति ,नीम निम्बोरी पर सामयिक सार्थक चिंतन ,रेत  के महल पर शिल्पाजी की प्रतीक्षा रहेगी ,मधुर गुंजन पर मधुजी का जीवन की आप धापी से कुछ पल अपने लिए चुराने का प्रयास ,संध्या शर्मा जी द्वारा समयिक पोस्ट,ललित शर्मा जी का सार्थक मनोहारी चित्रण,नई पुरानी  हलचल पर यशवंत माथुर जी ले शानदार लिनक्स,अनुपमाजी    द्वारा जीवन की भावपूर्ण व्याख्या ,राजेश कुमारी द्वारा रचना में समय के कुठाराघात तथा समाज की विक्रितीयों की संवेदनशील पोस्ट,experssion पर सुन्दर कविता,तथा काव्य संसार पर संवेदनशील रचना ,
आप सभी की रचनाओं से में प्रभावित हूँ तथा आप सभी का आभर कि आपके लेखन के हर पक्ष से मेरा परिचय हो रहा है ।अच्छा फिर मिलेंगे...................
अपने लिए पलों को चुराने का 

शुक्रवार, 18 मई 2012

आप सभी की रचनाएँ बहुत अच्छी हैं और सारगर्भित हैं ,क्षमा करें व्यक्तिगत आपके  ब्लॉग पर पहुंच कर टिपण्णी करने में असमर्थ हूँ|

गुरुवार, 17 मई 2012

ब्लॉग तक पहुँचने का प्रयास जारी है । अभी तक असफल हूँ ।
सादर ।

बुधवार, 16 मई 2012

सभी ब्लोगर  मित्रों को सादर अभिवादन ,
              आज मुझे आप सभी के सुझाव और मार्गदर्शन  की आवश्यकता है । में विगत तीन दिनों से ब्लोगिंग नहीं कर सक रहीं हूँ , कारण मैं  किसी भी खोज engine द्वारा अपने ब्लॉग को खोज सकने में असमर्थ  हूँ ,गूगल द्वारा अपने डेशबोर्ड पर आप सभी की post  पढ़ सकती हूँ पर टिपण्णी नहीं कर सक रही हूँ ,इसी तरह अपनी  रचना पोस्ट कर सक रही हूँ पर उसे  मुखपृष्ठ पर नहीं देख सक रही हूँ ।आप सभी के मार्गदर्शन की आवश्यकता है । 
                                                                   

Tu Jahan Jahan Chalega - Lata Mangeshkar

शुक्रवार, 11 मई 2012

माँ

                         माँ तुझे सलाम
१ ).  शरद  सी  शुभ   चंद्रिका    शुभ्र  ज्योत्त्सना   ममतामयी::::::::::::
निरभ्र   व्योम   सी   शांत   ,हे   माँ   सदा  ही  पूजानीय :::::::::::
पुष्प   के  पराग  सी   सूर्य   की   उजास   सी ::::::::::::::::::::
चित्रकार   की   तूलिका   सी    नित   नव   कल्पनामयी :::::::::::::::
देवत्त्व   भी    आराधन    करें   दानवों    की    श्रद्धामयी ::::::
 हे   "माँ "    सदा   ही    वन्दनीय    तू   "माँ  " सदा   ही    पूजनीय :::


                                         (२ )  


  अब भी संजोये  रक्खे  हैं मैंने हथेली पर वे लम्हें;
  जब उंगली थामें तुम मेरे क़दमों के साथ चला करतीं थीं ::::::
  मेरे आंसुओं के छंद तुम्हारी हंसी की सरगम में ढल जाया करते थे:: मेरे सपनों की ताल पर तुम अपनी जिन्दगी की सूरत बदल लिया  करतीं थीं :::::::::
कई बार झटके हैं  हाथ मैने ,फिर भी सलामत रक्खे हैं वे लम्हें::::::::::::::::::::::
मुझमें कई बार अपना बचपन तलाशते पाया है तुम्हें :::::::::::::::::::::
अपना वजूद खुद में समेटे हमारी दुनिया के आँगन में::::::::::::::::::::
भुला कर सभी सपने अपने खो जातीं हमारे जीवन उत्सव में:::::::::::::;;;
मेरे हौसलों की उड़ानों में ,मेरी जिन्दगी  की हर लय में :::::
मेरे जीवन के गुजरते सारे आरोहों-अवरोहों के ::::::::::::::::::::::::::
तुम्हारे पूजन ,अर्चन  की ही छाया  तले   हँसते हुए  लम्हें :::::::::::
तन्हाइयों  में भी कभी तनहा होने देते नहीं :::::::::::;;; 
तुम्हारी ममता की खुशबू से सराबोर लम्हें  ::::::::::::::::;;
सदा ही सहेजे रक्खेंगे हम प्यार में भीगे ये  अमोल लम्हें::::::::::::::::::::
 
 


    

बुधवार, 9 मई 2012

हमारा आज

थक चुके क़दमों से नहीं चला जाता मंजिल की ओर,
नहीं गाया  जाता अब जीवन का वैभव गान ..........
भूल चुके अब मनस्थ राग विराग ;
सपनों का जाल अब और नहीं बुना जाता ...
तारों के प्रतिबिम्बा में नहीं खोज पाती अब अपनों को ;
मूक हुआ ह्रदय संगीत ,राग हो चले सभी मौन ;
थक चुके क़दमों से नहीं चला जाता मंजिल की ओर;

बुधवार, 2 मई 2012

जननी तुझे कहाँ पाऊं अब

                                                         
  कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी कैसे पंथ चलूं एकाकी ,
तुझसे स्वर्ग रिझाना सीखा मन की तान सुनाना सीखा ;
मेरी जननी तेरे ये सुर इस दामन में ऐसे भर लूँ ;
देखूं जो दुखियारे मन को बस तेरा में अनुसरण कर लूँ .......................
सुखों की याद आंसू ले आती दुःख दिल को भारी  कर जाता ;
माना मैंने जननी  मेरा नाता तुझसे बस इतना ही था ;
देस पराये जाना मेरा ये तेरा संकल्प ही था ,
इन यादों के बंधन से कैसे खुद को आजाद करूँ में .
 कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने,
सुन उर की व्याकुल धड़कन तुम मेरा हर विषाद  हर लेतीं,
जग के तापों की झुलसन में भी शीतल एहसास करातीं ,
नेत्र प्रतीक्षा में आतुर हों मेरा पंथ निहारा करतीं ,
देवत्व की सी छाया तुम ,क्या में तुझ जैसी बन पाई ?
कौन बताये ............................................................
कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,