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बुधवार, 23 नवंबर 2011

२६/११ मुंबई बिखरे ख्वाब

26/11 in pictures: Sixty hours of terrorवो ख्वाब था जो बिखर गया यूँ,
वो अरमान था जो झुलस गया यूँ 
             ये बेवजह क़ुरबानी क्यूँ?
खाक हुआ सुकून उन दहकती लपटों में
   थम गईं सासें झुलसी हुई रातों में
ख्वाबों के गुलिस्तान के रंग लहू हो गये
     बीत तो गये वे दिन,गुजर जाते नहीं क्यूँ;
वो ख्वाब था जो गुजर गया यूँ

3 टिप्‍पणियां:

Sadhana Vaid ने कहा…

काश यह सचमुच एक ख्वाब ही होता जो रात के बीत जाने बाद टूट जाता और सुहानी सुबह के साथ सब कुछ सामान्य हो जाता ! दुःख की बात तो यही है कि यह ख्वाब नहीं था एक बहुत ही दर्दनाक व भयावह सत्य था जिससे अभी तक हम उबर नहीं पाये हैं ! काश वक्त के पटल से यह घटना एक ख्वाब की तरह ही तिरोहित हो जाती !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…






आदरणीया संगीता जी
सस्नेहाभिवादन !

ये बेवजह क़ुरबानी क्यूँ?
खाक हुआ सुकून उन दहकती लपटों में
थम गईं सासें झुलसी हुई रातों में
ख्वाबों के गुलिस्तान के रंग लहू हो गये
बीत तो गये वे दिन,गुजर जाते नहीं क्यूँ;


बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर जिन्हें देना चाहिए वे बेशर्मी से ख़ामोश हैं …

एक भावनाप्रधान रचना के लिए आभार !
साधुवाद !

मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

केवल राम ने कहा…

कई सारे प्रश्न हम सब करती हुई आपकी यह रचना ....सार्थक है ...!

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