संस्कार की बुनियाद पर अनुभवों की इमारत हैं,
आप यूँ ही गुजरा हुआ वक्त नहीं ,हमारी विरासत हैं,
आप से ही सीखा है हमने ,आपसे ही जाना है ,
आपसे ही पहचाना है संसार ने हमें ,आपको ही माना है
चेहरे की झुर्रियों में सघर्षों की इबारत हैं
जीवन की तपती राहों में वटवृक्ष सी छाँव हैं आप ..
जग के थपेड़ों से सहेजा सदा हमें ,
कंटक राहों में फूलों सी कोमलता रहें हैं ,
सागर सी विशालता अपने उर में समेटे,
स्नेह पगी डगर पर चलना सिखाया है हमें ,
माना जग के बंधनों से मुक्त हो विलीन हो गये ईश के भवसागर में ,
तब भी आप ही साथ थे ,आज भी आप ही साथ हैं |
आप यूँ ही गुजरा हुआ वक्त नहीं ,हमारी विरासत हैं,
आप से ही सीखा है हमने ,आपसे ही जाना है ,
आपसे ही पहचाना है संसार ने हमें ,आपको ही माना है
चेहरे की झुर्रियों में सघर्षों की इबारत हैं
जीवन की तपती राहों में वटवृक्ष सी छाँव हैं आप ..
जग के थपेड़ों से सहेजा सदा हमें ,
कंटक राहों में फूलों सी कोमलता रहें हैं ,
सागर सी विशालता अपने उर में समेटे,
स्नेह पगी डगर पर चलना सिखाया है हमें ,
माना जग के बंधनों से मुक्त हो विलीन हो गये ईश के भवसागर में ,
तब भी आप ही साथ थे ,आज भी आप ही साथ हैं |
2 टिप्पणियां:
संस्कार की बुनियाद पर अनुभवों की इमारत हैं,
आप यूँ ही गुजरा हुआ वक्त नहीं ,हमारी विरासत हैं,
उनके अनुभवों में जीवन का सार छुपा होता है .... बहुत सुंदर रचना है
बुजुर्गों के प्रति सम्मान का यह भाव आपके संस्कारशील हृदय का परिचय देता है ! इसमें संदेह नहीं वे सशरीर हमारे साथ हों या न हों उनकी शुभेच्छाएं ,आशीर्वाद एवं अनुभवों का आलोक जीवन के संघर्ष पूर्ण रास्तों पर सदैव हमारा मार्ग प्रकाशित करता है !
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