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बुधवार, 16 नवंबर 2011

संस्कार और हम

  हमारे  सामाजिक विन्यास को संजोये रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने जीवित एवं स्वर्गगामी रिश्तों के मध्य रिवाजों व रस्मों की श्रृंखलाएं बना राखी हें, उन्हें आज भी उसी तरह निभाना कितना सही हे ! वो वक्त और था जब  हमारी  जानकारियों  दायरे भी  सीमित थे जो बता दिया जाता था उसे ही करने के लिए हम बाध्य थे. किन्तु आज जब शिक्षा का स्वरुप बदल गया हे, और हर कार्य के करने के पहले आज की पीढ़ी क्यों?  जरुर पूछती हे,और जो सही लगता  हे उन्हें, उसे ही सही  और  बहुत  सम्मान   के साथ निभाती हे. उनका तरीका व्यवहारिक और भावनात्मक  हे हमें उनका सम्मान करना चाहिए. हमारा जोर-जबरदस्ती का तरीका उन्हें हमसे और हमारे संस्कारों से दूर कर देगा ................

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

संगीता जी,
सुंदर आलेख,..
मेरा ब्लॉग काव्यांजली में आपका स्वागत है ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

संगीता जी,
निवेदन है की टिप्पणी बॉक्स से वर्डवेरीफिकेशन हटा ले
टिप्पणी करने में असुविधा होती है,...

Sadhana Vaid ने कहा…

बिलकुल सही कह रही हैं ! आज की पीढ़ी पर पुरातन मूल्यों को थोपना उचित नहीं लेकिन वे जिस मार्ग पर चल रहे हैं और जो ग्रहण कर रहे हैं उसकी निगरानी भी उतनी ही ज़रूरी है ! सुन्दर विचार ! मैंने भी कहा था पहले वर्ड वेरीफिकेशन हटा दीजिये!

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