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रविवार, 27 नवंबर 2011

कविता की रचना

                     दर्द जब परिधि से बाहर आये तो कविता बनती है,
             कोई गीत जब होंठों पर आ जाये तो कविता बनती है,   
             कोई जब सपने सजाये तो कविता बनती है,
             फूलों में रंग और महक हो तो कविता बनती  है, 
              सपनों में उमंग हो,तो कविता बनती है.... 
               सृजन जब संस्मरण बन जाये तो कविता बनती  है, 
                प्यार का सावन जब लहलहाए तो कविता बनती है, 
                 वेदना की कड़ी धूप में जब स्वप्न झुलस जाये तो कविता बनती है...............
                  शरद के बाद बसंत जब आये तो कविता बनती है 
                 और आंधियां झोंक दें जब आँखों में धुल तब कविता बनती है.......... 
             किसी शिशु की किलकारी गूंजे  तो कविता बनती है
              जब आर्तनाद करने लगे श्मशान का सन्नाटा तो कविता बनती है............................
                         

5 टिप्‍पणियां:

amrendra "amar" ने कहा…

Bilkul Sach kaha hai aapne
kavita tabhi banti hai jab dil me halchal ho
sunder prastuti

केवल राम ने कहा…

सच में यह कविता ........मेरे ब्लॉग चलते-चलते पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका आभार

रमेश शर्मा ने कहा…

वेदना की कड़ी धूप में जब स्वप्न झुलस जाये तो कविता बनती है...सजल सरस पन्क्तिया.

संजय भास्‍कर ने कहा…

मन के भावों की उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

संजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

avanti singh ने कहा…

bahut बेहतरीन लिखती है आप ...कुछ वक्त पहले मैं ने एक कविता लिखी थी आप ने वो याद दिला दी कुछ पंक्तियाँ रख रही हूँ..........कविता, ये कविता आखिर क्या होती है !
तेरे और मेरे जीवन की इसमें छुपी व्यथा होती है!!
कभी तो हंसती, मुस्काती, कभी ये बार बार रोती है!
पावँ में इस के कभी है छाले,कभी रिसते घाव धोती है!!
कविता, ये कविता आखिर क्या होती है ..............

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