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रविवार, 13 नवंबर 2011

दायरे उम्र के

    एक उम्र गुजारी हे एहसासों के साथ,
           ख्वाबों के साये में,चाहतों के दामन में
           जिंदगी के खुशनुमा लम्हों केसाथ
           एक उम्र गुजरी हे अपनों के आशियाने में
            इस  उम्र के बाद.......................
                                हर एहसास परे हो जाता हे, ख्वाब दफन हो जाते हें
            चाहतें दम तोड़ देती हें
            अब न दिल  नर्गिस की महक से लहकता हें,न ख्वाब किसी की यादों से महकते हें
            लफ्जों की रोशनी  धुंधली सी हो जाती हे, दायरे खुद ही सिमट जाते हें
            सबों से भी अब शिकायत नहीं होती, वक्त की सिम्फनी पर कोई भूली हुई धुन याद नहीं आती
            उम्र के इस मोड़ पर समझ का दायरा बढ़ जाता हे,
            हर एहसास परे हो जाता हे, चाहतें दफन हो जाती हें,
            ख्वाब खो जाते हें,वक्त थम जाता हे ...............
  

                           

4 टिप्‍पणियां:

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है संगीता जी ! हर शब्द मन को छूता है ! शुष्कता की जो स्थिति बनता जाती है उम्र के साथ उससे निजात पाने के उपाय भी तो सोचने होंगे वरना भावों को कैसे सींचा जा सकेगा ! सुन्दर रचना !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सगीता जी,
आपने सुंदर शब्दों के साथ बहुत ही अच्छा लिखा ..
हर अहसास परे हो जाता है,
ख़्वाब दफ़न हो जाते है ..बेहतरीन पोस्ट बधाई ...
मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ...

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव समेटे हुये मर्म को छूती रचना !
बधाई स्वीकार करे!
आपके ब्लॉग पे आना अच्छा लगा !
सदस्य बन रहा हूँ !
मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति है संगीता जी !

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