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मंगलवार, 20 मार्च 2012

हम कब होंगे आजाद

न राह नजर आती हैं न मंजिलें ,न रौशनी का कोई मंजर नजर आता है ,
भटक न जाये खलाओं(शून्य)में कहीं ;मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
दफ्न होते जा रहें हैं गरीबों के रूहानी नगमें ;हर जवान आँखे मायूस हैं ,
फजायें शोलों सी बरसतीं हें हरदम;
झुलसे जा रहे हैं मेरे वतन के लोग ,क्यूँ मेरा वतन बेजार नजर आता है,
हर ऊंचे मकां की दहलीज तले;किसी भूखे की खोखली सी सदा गूंजती है;
जीवन आँखें खोल भी न पाए  कि हंसती हुई मौत के क़दमों की आहट गुजर जाती है ;
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है  जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती  बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
 

18 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||

अभी मेरी पोस्ट पर आप की टिप्पणी मिली |
उसी से यह दोहे--
सादर --

रोने से कैसे भरे, तन के गहरे जख्म ।
दवा दुआ कर ले भले, जख्म होयंगे ख़त्म ।

गिरेबान में झांक कर, कर सुधार शुरुवात ।
खुद से कर खुद-गर्ज तू , सुधरेंगे हालात ।।

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut hi marmik prastuti sangita ji ....sadar abhar.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति
my resent post

काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

Ramakrishnan ने कहा…

Really beautifully written

RITU BANSAL ने कहा…

अच्छे शब्दों की बेहतरीन प्रस्तुति ..

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर है पोस्ट।

lamhe ने कहा…

a wonderful message , hope it really would inspire even one single patriot things might change and our dream may get the way to work out.
really great

Asha Joglekar ने कहा…

जालिम जितना जोर लगाले हम तो फिर भी जीतेंगे ।
वतन में अब युवा शक्ती के परचम ही लहरायेंगे ।

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव |बधाई
आशा

dinesh aggarwal ने कहा…

सुन्दर भावाव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकार करें.....

Unknown ने कहा…

सुंदर ........

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
.... bahut behtareen pankti...

बेनामी ने कहा…

हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है...........
shaandar panktiya..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति...

dasarath ने कहा…

बहुत खूब

Sadhana Vaid ने कहा…

उम्मीद पे दुनिया कायम है ! आशा का दामन थामे रहना है कभी तो वह सुबह भी आयेगी जिसके इंतज़ार में ना जाने कितनी रातें आँखों में ही कटी हैं !

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