न राह नजर आती हैं न मंजिलें ,न रौशनी का कोई मंजर नजर आता है ,
भटक न जाये खलाओं(शून्य)में कहीं ;मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
दफ्न होते जा रहें हैं गरीबों के रूहानी नगमें ;हर जवान आँखे मायूस हैं ,
फजायें शोलों सी बरसतीं हें हरदम;
फजायें शोलों सी बरसतीं हें हरदम;
झुलसे जा रहे हैं मेरे वतन के लोग ,क्यूँ मेरा वतन बेजार नजर आता है,
हर ऊंचे मकां की दहलीज तले;किसी भूखे की खोखली सी सदा गूंजती है;
जीवन आँखें खोल भी न पाए कि हंसती हुई मौत के क़दमों की आहट गुजर जाती है ;
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
18 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
अभी मेरी पोस्ट पर आप की टिप्पणी मिली |
उसी से यह दोहे--
सादर --
रोने से कैसे भरे, तन के गहरे जख्म ।
दवा दुआ कर ले भले, जख्म होयंगे ख़त्म ।
गिरेबान में झांक कर, कर सुधार शुरुवात ।
खुद से कर खुद-गर्ज तू , सुधरेंगे हालात ।।
bahut hi marmik prastuti sangita ji ....sadar abhar.
सुंदर प्रस्तुति
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
Really beautifully written
अच्छे शब्दों की बेहतरीन प्रस्तुति ..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है ,
फाकापरास्ती बांहें फैलाये पसरती जा रही है ,मेरा वतन यूँ बेजार नजर आता है.
बहुत ही सुन्दर है पोस्ट।
a wonderful message , hope it really would inspire even one single patriot things might change and our dream may get the way to work out.
really great
जालिम जितना जोर लगाले हम तो फिर भी जीतेंगे ।
वतन में अब युवा शक्ती के परचम ही लहरायेंगे ।
बहुत सुन्दर भाव |बधाई
आशा
सुन्दर भावाव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकार करें.....
सुंदर ........
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें.
ख़त्म होंगे क्या कभी मायूस उमंगों के फ़साने ,मंजिल मिलेगी क्या गुमशुदा से ख़्वाबों की,
फिर से आबाद होंगी मोहब्बत ताज के गलियारों में ,हौले से मेरा दिल भी बुदबुदाता है ,
.... bahut behtareen pankti...
हर ओर इंसानियत की आहों का शोर है जुल्म ओर जालिमों का जोर है...........
shaandar panktiya..
सुंदर अभिव्यक्ति...
बहुत खूब
उम्मीद पे दुनिया कायम है ! आशा का दामन थामे रहना है कभी तो वह सुबह भी आयेगी जिसके इंतज़ार में ना जाने कितनी रातें आँखों में ही कटी हैं !
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