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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

बेटियां

आज सभी लोग कुल दो बातों पर ही चर्चा करते हैं, एक भ्रष्टाचार और दूसरा कन्या भ्रूण हत्या | भ्रष्टाचार तो 
नेता ही हटा पायेंगे | पर कन्या भ्रूण को बचाना तो हमें ही है | हमारा सामाजिक विन्यास पुनः नए सिरे से 
विन्यासित होने का इंतज़ार कर रहा है | बेटियों की चाहत सिर्फ ३५% परिवारों में है, शेष ६५% आज भी बेटी को बोझ ही समझते हैं क्योंकि उसे तो एक अन्य परिवार में जाना ही है |  हमें तो उनसे सहारा किसी भी तरह का नहीं मिलना है | फिर क्यों उसे जन्म लेने दिया जाये | और अब वर्तमान स्थितियाँ  इतनी विकृत हो गयी हैं, लिंग अंतर इतना ज्यादा है की समझाइश का समय भी नहीं है | हाल ही में महाराष्ट्र में "मिशन साइलेंट ओब्ज़ेर्वेर" के तहत कोल्हापुर  की सभी सोनोग्राफी मशीनों को कलेक्टर के आदेशानुसार एक सर्वर (कम्प्यूटर) से कनेक्ट कर उनके द्वारा 
किये जा रहे परीक्षणों का अवलोकन किया गया तथा जिन मशीनों से लिंग परीक्षण किये जा रहे थे उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए | लिखने का तात्पर्य यह है की जब तक  लोगों में सजा का भय न हो तब तक किसी भी तरह के सकारात्मक सुधार की गुंजाईश नहीं रहती है | हर परिवार में एक कन्या का पालन पोषण अनिवार्य कर दिया जाये और यदि इसमें किसी तरह की लापरवाही हो तो उस परिवार हेतु दंड का प्रावधान हो | यदि आज भी नहीं  चेते तो  फिर  समाज   में मानसिक  विक्र्तियों का पनपना नहीं रोक पायेंगे | यह हमारा कर्त्तव्य भी है की साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से प्यार  से, समझाइश से इसे समाज का सर्वथा स्वीकृत सत्य बनाना है | अंततः बेटियों को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका और जिम्मेदारी माता की है जो अपने को कभी कमजोर न समझे और न ही जोर 
जबरदस्ती  के आगे घुटने टेके और सबसे महत्वपूर्ण बेटे का लोभ त्यागे  .................... |  

6 टिप्‍पणियां:

Sadhana Vaid ने कहा…

सार्थक संदेश के साथ एक सारगर्भित आलेख ! कन्या भ्रूण ह्त्या को रोकने के लिये और लड़कियों के बेहतर भविष्य के लिये कुछ उपाय और योजनायें बनाई अवश्य गयी हैं लेकिन सुधार की रफ़्तार अभी बहुत धीमी है ! यह जागृति सच्चे अर्थों में तब ही आ पायेगी जब आम आदमी की सोच में बदलाव आएगा ! यह बदलाव तब आएगा जब लड़कियों से जुड़ी अन्य समस्याएं कम होंगी ! लड़कियों को इतनी सुरक्षा देनी होती है उनके विवाह के लिये इतने पापड़ बेलने पड़ते हैं कि दंपत्ति जब अपना परिवार बढ़ाना चाहते हैं तो लड़की की नहीं वरन लड़के की कामना ही करते हैं ! सार्थक चिंतन के लिये बधाई !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हमारी सोच ही इस वीभत्स सामाजिक समस्या का हल निकाल सकती है ...सरकारी योजनायें नहीं.... सही विचार सामने रखे आपने

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह!
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सुन्दर प्रेरक विचार....

----अनिवार्यता क विचार भी एक प्रकार से सही है.... हम देखते हैं कि हमारे शास्त्रों, पुराणों की कथाओं में रिशि-मुनियों या अन्य राजकुलों आदि के यहां कन्यायें ही पलती थीं ...कहीं भी पुत्रों को किसी रिशि, मुनि, रिशिकुल का पालित नहीं दिखाया गया...पालिता पुत्रियों की भांति पालित पुत्रों का चलन नहीं दिखाई देता....

bhuneshwari malot ने कहा…

आपने समाज की ज्वंलत समस्या के बारे में प्रेरक विचार प्रस्तुत किये है, इसके लिए आभार। इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके ।

dinesh aggarwal ने कहा…

इस तरह की रचनायें समाज में निश्चित ही जागरूपता लायेंगी।
हम सब प्रयास करते रहें। कभी न कभी सफलता आवश्यक
प्राप्त होगी।

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