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बुधवार, 2 मई 2012

जननी तुझे कहाँ पाऊं अब

                                                         
  कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी कैसे पंथ चलूं एकाकी ,
तुझसे स्वर्ग रिझाना सीखा मन की तान सुनाना सीखा ;
मेरी जननी तेरे ये सुर इस दामन में ऐसे भर लूँ ;
देखूं जो दुखियारे मन को बस तेरा में अनुसरण कर लूँ .......................
सुखों की याद आंसू ले आती दुःख दिल को भारी  कर जाता ;
माना मैंने जननी  मेरा नाता तुझसे बस इतना ही था ;
देस पराये जाना मेरा ये तेरा संकल्प ही था ,
इन यादों के बंधन से कैसे खुद को आजाद करूँ में .
 कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने,
सुन उर की व्याकुल धड़कन तुम मेरा हर विषाद  हर लेतीं,
जग के तापों की झुलसन में भी शीतल एहसास करातीं ,
नेत्र प्रतीक्षा में आतुर हों मेरा पंथ निहारा करतीं ,
देवत्व की सी छाया तुम ,क्या में तुझ जैसी बन पाई ?
कौन बताये ............................................................
कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, 
        

27 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,

बहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर रचना,.....संगीता जी,...

MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर संगीता जी....
बहुत प्यारे भाव...


सादर.

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

vaah!Maa ke liye bahut pyari kavita...dil ko chhoo gayee.

संध्या शर्मा ने कहा…

देवत्व की सी छाया तुम ,क्या में तुझ जैसी बन पाई ?
हर बेटी अपनी माँ की परछाई होती है... बहुत सुन्दर कोमल भावयुक्त रचना

Maheshwari kaneri ने कहा…

bahut sundar..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

kavita vikas ने कहा…

bahut sundar abhivyakti,sangitaji

अशोक सलूजा ने कहा…

माँ ...मेरा भी नमन स्वीकार करो ...!!!


एक अपील ...सिर्फ एक बार ?

विभूति" ने कहा…

भावो का सुन्दर समायोजन......

Saras ने कहा…

एक माँ की कमी जीवन में कभी पूरी नहीं हो सकती ......बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति संगीताजी !

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें। 

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है संगीता ! मर्म को स्पर्श करती भीगी-भीगी सी कोमल रचना ! शुभकामनायें !

बेनामी ने कहा…

निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने,.................अच्छी लगी

mridula pradhan ने कहा…

bhawmayee rachna.....

lamhe ने कहा…

how exactly you have expressed the feelings of entire life that we fail to gather but we really want to!
we should love our dear ones in their life time to the utmost, nothing is more precious than that

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावमयी मर्मस्पर्शी रचना...

vandana gupta ने कहा…

कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहुत सुन्दर व सार्थिक अभिव्यक्ति।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

maa....... pyari maaa:)

Aruna Kapoor ने कहा…

नहीं जानती तुझ बिन जननी कैसे पंथ चलूं एकाकी!

...जननी की कमी को कौन पूरा कर सकता है?..अकेलापन ही महसूस होता है!...उत्तम अभिव्यक्ति, आभार!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी निराशा ने जब घेरा नेह अनुपम बरसाया तूने ,
नहीं जानती तुझ बिन जननी पंथ चलूँ कैसे एकाकी ,,,,,

माँ सा दूजा कहाँ मिलता है जीवन में ... पर फिर भी माँ ये सिखा जाती है की कैसे चला जाता है अकेले भी ...

Arun sathi ने कहा…

शाश्वत की काव्यात्मक अभिव्यक्ति...

Suman ने कहा…

बहुत सुंदर रचना ......

Satish Saxena ने कहा…

आज तलक वो मद्धम स्वर
कुछ याद दिलाये कानों में
मीठी मीठी लोरी की धुन
आज भी आये, कानों में !
आज जब कभी नींद ना आये,कौन सुनाये मुझको गीत !
काश कहीं से मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

देस पराये जाना मेरा ये तेरा संकल्प ही था ,
इन यादों के बंधन से कैसे खुद को आजाद करूँ में .

bahut hi sundar aur bhavpoorn rachana .....badhai ke sath abhar bhi Sangeeta ji .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




सुन उर की व्याकुल धड़कन तुम मेरा हर विषाद हर लेतीं
जग के तापों की झुलसन में भी शीतल एहसास करातीं

सच ! मां के पास ऐसा ही महसूस होता है मुझे हमेशा …

आदरणीया संगीता जी
नमस्कार !
बहुत भाव पूर्ण है आपका गीत ! बहुत सुंदर !
मां जैसा दुनिया में कोई कहां !
ओ मां तुझे सलाम !!

भगवान से प्रार्थना है किसी से उसकी मां न छीने …

मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

Smart Indian ने कहा…

हृदयस्पर्शी रचना है। टंकण में कुछ शब्द अव्यवस्थित हो गये लगते हैं, सम्भव हो तो ठीक कर लीजिये।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण कविता |ब्लॉग पर आने के लिए आभार

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