दर्द की हर परिधि के पार जाना चाहती हूँ ,
हर झूठी संवेदना से दूर जाना चाहती हूँ ,
चाहती हूँ तैर जाना जीवन की इस अम्बुधि में ,
किसी व्यथा से अब नहीं व्यथित होना चाहती हूँ ...
नींद सुख की एक ही सही पर कुछ विश्राम चाहती हूँ...
अन्धकार उर में समेटे जीवन की इस पगडण्डी पर ,
कुछ उजले स्वप्नों से तिमिर को भी हर सकूं मैं,
कोई स्वप्न फिर न छला जाये ;संग कोई न चले ,
अब असीमित आकाश में प्राणों के पंख तौलना चाहती हूँ .
जीवन की अंतिम दस्तक पर मृत्यु का यशगान करूँ जब,
गूंज उठे फिर मुक्ति गीत ,और सृजन की तैयारी हो ,
अमर ध्येय हो सबका जग में; सफल मनोरथ हों मानस के ,
अपने आराधन से वर में जीवन यज्ञ की शत शत आहुति में ,
तूफानों को मुस्कानों में ;वीरानों को उद्यानों में ,
अपमानों को सम्मानों में ,परिणित कर हँसते -हँसते,
जीवन की इस अम्बुधि से होम करना चाहती हूँ .
23 टिप्पणियां:
कोई स्वप्न फिर न छला जाये ;संग कोई न चले ,
अब असीमित आकाश में प्राणों के पंख तौलना चाहती हूँ ...
अदभुद!!!!
बहुत सुन्दर कृति संगीता जी.
सादर.
उदासीनता की तरफ, बढे जा रहे पैर ।
रोको रोको रोक लो, करे खुदाई खैर ।
करे खुदाई खैर, लगो योगी वैरागी ।
दुनिया से क्या वैर, भावना क्यूँकर जागी ।
दर्द हार गम जीत, व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो तुम छोड़ उदासी ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
sundar prastuti.
दर्द की हर परिधि के पार जाना चाहती हूँ ,
हर झूठी संवेदना से दूर जाना चाहती हूँ ,
हम आएँ हैं दुनिया में तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
...खुश रहने का प्रयास जरूरी है
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना बधाई
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
कोई स्वप्न फिर न छला जाये ;संग कोई न चले ,
अब असीमित आकाश में प्राणों के पंख तौलना चाहती हूँ ...
Bahut hi Sunder....
तूफानों को मुस्कानों में ;वीरानों को उद्यानों में ,
अपमानों को सम्मानों में ,परिणित कर हँसते -हँसते,
जीवन की इस अम्बुधि से होम करना चाहती हूँ .
आपकी इस शुभाशंसा में मेरे स्वर भी सम्मिलित हैं संगीता ! बहुत सुन्दर रचना है ! बधाई एवं मंगलकामनाएं !
सजी मँच पे चरफरी, चटक स्वाद की चाट |
चटकारे ले लो तनिक, रविकर जोहे बाट ||
बुधवारीय चर्चा-मँच
charchamanch.blogspot.com
awsam ..mem out of limit ....!!
अच्छा ओर बहुत अच्छा
दर्द की हर परिधि के पार जाना चाहती हूँ ,
हर झूठी संवेदना से दूर जाना चाहती हूँ ,
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
" सवाई सिंह "
जीवन की अंतिम दस्तक पर मृत्यु का यशगान करूँ जब,
गूंज उठे फिर मुक्ति गीत ,और सृजन की तैयारी हो ,
वाह! कितना बड़ा दर्शन समाहित है सिर्फ इन दो पंक्तियों में. अद्भुत...
bhut hi gehra soch hai apke..
बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
सुंदर रचना बधाई ....
चाहती हूँ तैर जाना जीवन की इस अम्बुधि में ,
किसी व्यथा से अब नहीं व्यथित होना चाहती हूँ ...
नींद सुख की एक ही सही पर कुछ विश्राम चाहती हूँ...
बहुत खूब! बहुत गहन और भावपूर्ण रचना....
so full of positive energy and hopes.
bahut saral aur sunder rachna.....
बहुत अच्छी रचना।
अपमानों को सम्मानों में ,परिणित कर हँसते -हँसते,
जीवन की इस अम्बुधि से होम करना चाहती हूँ .
वाह ...बहुत ही बढिया।
किसी व्यथा से अब नहीं व्यथित होना चाहती हूँ ...
नींद सुख की एक ही सही पर कुछ विश्राम चाहती हूँ..
..thak haar kar man sach kitna bojhil lagta hai... lekin khushi ki ek kiran kitna ujala kar jaati hai... shayad yahi jindagi ka falsafa hai..
bahut sundar sarthal chintan karati rachna
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