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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

तन्हाई

 नयनों का ये सूनापन, थका हुआ तन एकाकी मन ,
          ये ही तो अवलंबन है मेरे एकाकी जीवन धन ....
 जग के भुज बंधन में मैंने देखे अगणित रिश्ते मन के ,
       जीवन के निर्माण पंथ के साथी मेरे थे जो बिछड़े ..
इस जीवन को श्राप कहूँ या समझूँ तप का वरदान  
      नयनों का ये सूनापन ..................................
टूटे सपनों की बस्ती में मिटती अपनी हस्ती देखी,
  उल्लाह्स खोजती जीवन में ,संवेदना सदा घुटती देखी ..
रिश्तों की जब उष्ण तपिश है ,फिर भी क्यूँ दे रही है सिहरन 
      नयनों का ये सूनापन ,थका हुआ तन अवसादी मन .....
सांसों की नाजुक डोर से रिश्ते सदा सहेजे मैंने 
       कर्तव्यों की बेदी पर स्वप्न सदा बिखेरे मैंने .
पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
         खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है 
नयनों के इस सूनेपन से ,करती हूँ उनका में वन्दन ..........
नयनों का ये सूनापन  थका हुआ तन एकाकी मन ........

14 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

संगीता जी,...बहुत प्यारी भावपूर्ण सुंदर रचना मुझे अच्छी लगी कुछ पन्तियाँ अच्छी बनी है,बहतरीन पोस्ट ...
नयनों का ये सूनापन ,थका हुआ तन अवसादी मन .....
सांसों की नाजुक डोर से रिश्ते सदा सहेजे मैंने
कर्तव्यों की बेदी पर स्वप्न सदा बिखेरे मैंने .
पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,

समर्थक बने तो खुशी होगी....
खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है
नयनों के इस सूनेपन से ,करती हूँ उनका में वन्दन ..........
नयनों का ये सूनापन थका हुआ तन एकाकी मन ........

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है

bahut bhaawuk prastuti hai...kyu na khoye palo me se sunder palon ko punarjeewit kiya jaye apni yado ki khaad de kar....kyu na ekaki man ko, nayno ke soone pan ko un sunder palo ki yaad kar ke chamak de di jaye.

Kailash Sharma ने कहा…

पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है

....यही आज के जीवन का कटु सत्य है...बहुत भावमयी प्रस्तुति..

रजनीश तिवारी ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण रचना ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहरे संवेदनशील भाव.....

Satish Saxena ने कहा…

अच्छे भाव है....
शुभकामनायें आपको !

Sadhana Vaid ने कहा…

मन को छू लेने वाली बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है संगीता ! मन को गहराई तक संवेदित कर गयी ! बहुत सारी शुभकामनाएं !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है

बेहतरीन पंक्तियाँ और बेहतरीन ब्लॉग।

सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी ,संवेदनाशील रचना....

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

पंथ निर्जन है अब मेरा ,मन एकाकी ढूँढ रहा है,
खो गए ,मेरे पल थे जो उनको शायद ढूंढ़ रहा है

संवेदनशील रचना...

dinesh aggarwal ने कहा…

दर्द का अहसास कराती, संवेदना को जगाती तथा हृदय की
गहराइयों तक उतरने वाली रचना।

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना !
दिल को छू गई !
आभार !

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