अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
तकदीर के आगे अब पेश नहीं होना है मुझे ;जिंदगी ने तदबीरों से दोस्ती जो कर ली है .....
साहिल पर आकर पलटते देखा हैं सकीना हरदम;छोड़ दिया साहिल ही मैने;
मझधारों की लहरों के साथ चलते-चलते ;हिचकोलों से मोहब्बत हो चली है....
कोई साथ अब यकीं नहीं दिला सकता मुझे ;रातों को ख़्वाबों से किनारा कर दिया मैने;
बेमानी रिश्तों से महरूम होने की शिकायत ही नहीं है मुझे ;
अजनबी राहों से मोहब्बत हो गई है मुझे.........
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे
30 टिप्पणियां:
तकदीर के आगे अब पेश नहीं होना है मुझे ;जिंदगी ने तदबीरों से दोस्ती जो कर ली है .....
....बहुत सुंदर रचना..
अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
बहुत सुन्दर संगीताजी
बढ़िया !!!
tanhaayi hi to hai..... kuch to sikha hi jayigi....
वाह बेहद खूबसूरत.....तन्हाई से दोस्ती कर ली ।
अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.;
गुलों की नरमी से भी परहेज है मुझको ,काँटों की चुभन की आदत हो चली है.
ये तनहाईयों की आदत भी ... जाने कहां से कहां ले जाती है ...बहुत खूब ।
साहिल पर आकर पलटते देखा हैं सकीना हरदम;छोड़ दिया साहिल ही मैने;
मझधारों की लहरों के साथ चलते-चलते ;हिचकोलों से मोहब्बत हो चली है....
waah.......
बहुत सुंदर संगीता जी.
अब नहीं बर्दाश्त कोई खलल मुझे ,की अब तनहाइयों की आदत हो गई है.
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे
बहुत सुन्दर भानप्रणव रचना!
tanhai se dosti yani khud se dosti ab kuch bhi aapko reeta ahin kar sakega jo aap khud ke hi meet ban gaye badhayee ho
बेमानी रिश्तों से महरूम होने की शिकायत ही नहीं है मुझे ;
अजनबी राहों से मोहब्बत हो गई है मुझे.........
behtareen.. main isko apne fb status pe use kar lun:))
रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे
वाह !!!!! सुंदर भाव.
http://mitanigoth2.blogspot.in/2012/04/blog-post_25.html
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी रचना,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
सचमुच अब तनहाइयों की आदत सी हो गई है..
बहुत सुंदर ...गहरी अभिव्यक्ति....
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
इसे भी देखें-
फेरकर चल दिये मुँह, था वो बेख़ता यारों!
आईना अब भी देखता है रास्ता यारों!!
तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात , टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे
बहुत बढ़िया संगीता ! हर लफ्ज़ में टीस है और हर टीस में ज़िंदगी से टक्कर लेने का हौसला भी है ! बहुत प्यारी रचना है ! बहुत बहुत बधाई !
bahut acchha likha hai...prastuti thodi behtar hoti to aur prabhavshali lagta.
गहरी अभिव्यक्ति
आपने अपनी बातों को जिस तरह भी प्रस्तुत किया है उसे मैं तरजीह देता हूँ । धन्यवाद ।
---सुन्दर नज़्म...प्रभावपूर्ण भाव व अच्छी भावाव्यक्ति...
---सही कहा अनामिका जी... कुछ वर्तनी ..कुछ काव्यमय लेखन-कला से प्रस्तुतिकरण और अच्छा हो सकता है..
waah bahut khoob sangeeta ji pahli baar aapke blog par aana hua
bahut khubsurati se shbd diye hain ahsason ko....sadar..
"तबस्सुम के भेस में अश्कों के कारवां को सहेजे अंजुमन संवारते रहे हैं ;
कि रात, टूटे हुए सितारों से दामन सजाने का हुनर सिखा गई है मुझे"
वाह और सिर्फ़ वाह ! बहुत ही सुंदर भाव और शब्दों का चयन ! बधाई !
वाह! बहुत सुन्दर.
आपकी गहन भावाभिव्यक्ति
ने भावविभोर कर दिया है.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
बहुत सुन्दर दिल की गहराइयों से निकली हुई भावाभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
गहन भावाभिव्यक्ति.......
bahut sunder......
तन्हाई की आदत हो जाए तो जीवन जीने की कला आ जाती है ....
एक टिप्पणी भेजें