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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

जीवन स्वप्न

मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना .................
मानों दरख्त जीवन के सूख चले मुरझा चले हैं,
बहती हुई नदी की सतह पर ही रहीं हूँ में अब जाना.....
स्वप्न संवर कर भी न संवर सके , 
जीवन को पुकार कर भी न पुकार सके ;
अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
 जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ...........................    

33 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ... जीवन के गहरे मायने

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना

बेहतरीन ।



सादर

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

यही जीवन है और जीजिविषा भी

सदा ने कहा…

जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना .....
गहन भाव लिए ...

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।।

अनुपमा पाठक ने कहा…

रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
सुन्दर!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,

बहुत सुंदर भाव संगीता जी......

संध्या शर्मा ने कहा…

मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ......
यही है जीवन...गहन भाव...

mridula pradhan ने कहा…

bahut achcha likhi hain.....

बेनामी ने कहा…

मन के जीते जीत है ............हमें पूरी गहराई से अपने काम के तालाब में कूद जाना चाहिए ..........

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति से बेहतरीन रचना लिखी है,...संगीता जी

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

Santosh Kumar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ... मन की गहराइयों के राज उजागिर कर दिए आपने.

आभार.

मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है.

Anupama Tripathi ने कहा…

दर्द से भरे मन के भाव ......
गहन वेदना बह निकली है ....ऐसे ही बहने दीजिये भावों को ...नदी बनते देर नहीं लगती .........
शुभकामनायें ...!!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,

वाह!धैर्यवान होना जरूरी होता है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,

इस उलझन में भी जीते जाना है ...सुंदर अभिव्यक्ति

sangita ने कहा…

Thanx to all of you all.....

बेनामी ने कहा…

सुन्दर शब्दों में ढले सुन्दर भाव।

vikram7 ने कहा…

हवा में फैली ..
तुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
अनुनेह मेरा ग्रहण करोगे ...
ईश्वर के प्रति मन में उठे भा
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना ................
गहन भाव लिए बेहतरीन रचना

Rohitas Ghorela ने कहा…

उम्दा प्रस्तुती

अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार

Unknown ने कहा…

दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना

गहरे अर्थ के साथ बहुत ही अच्छी रचना...

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
vakai lajabab rachana ....yathrth ki kasauti pr bilkul khara..... badhai Sangita ji

Smart Indian ने कहा…

@दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,

बहुत बढिया!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............

यथार्थ में जीती हुई उत्कृष्ट रचना ."अनमनी सी" शब्द के प्रयोग ने मन को छू लिया

बहुत कठिन था डूबना , किंतु उसी के बाद
ज्ञात हुआ कितना मधुर, है जीवन का स्वाद

रचना दीक्षित ने कहा…

जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना.

दिल की गहराईओं से उत्पन्न रचना.

बधाई.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

साँसों की इस डोर के सिवा कोई बाँध भी तो नहीं सकता इस जीवन कों इस सत्य कों पहचानना जरूरी अहि ...

sangita ने कहा…

Thanx to all of u.

RITU BANSAL ने कहा…

'कलमदान' पर पधार कर आपने उसकी सुन्दरता बधाई..आपका धन्यवाद..
बहुत सुन्दर लेखन है आपका..
kalamdaan

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रभावशाली रचना.

Aruna Kapoor ने कहा…

बहुत ही सुन्दर शब्दों की शृंखला है यह कविता!...सुन्दर भाव!...बधाई!

sangita ने कहा…

Thanx to all of you.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गहन विचारों से परिपूर्ण अच्छी प्रस्तुति!

Saras ने कहा…

रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ........................... मन की गहराईओं को छूती रचना ..बहुत सुन्दर !

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