मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना .................
मानों दरख्त जीवन के सूख चले मुरझा चले हैं,
बहती हुई नदी की सतह पर ही रहीं हूँ में अब जाना.....
स्वप्न संवर कर भी न संवर सके ,
जीवन को पुकार कर भी न पुकार सके ;
अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ...........................
33 टिप्पणियां:
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ... जीवन के गहरे मायने
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना
बेहतरीन ।
सादर
यही जीवन है और जीजिविषा भी
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना .....
गहन भाव लिए ...
सुन्दर प्रस्तुति ।।
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
सुन्दर!
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
बहुत सुंदर भाव संगीता जी......
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ......
यही है जीवन...गहन भाव...
bahut achcha likhi hain.....
मन के जीते जीत है ............हमें पूरी गहराई से अपने काम के तालाब में कूद जाना चाहिए ..........
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति से बेहतरीन रचना लिखी है,...संगीता जी
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
सुन्दर प्रस्तुति ... मन की गहराइयों के राज उजागिर कर दिए आपने.
आभार.
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है.
दर्द से भरे मन के भाव ......
गहन वेदना बह निकली है ....ऐसे ही बहने दीजिये भावों को ...नदी बनते देर नहीं लगती .........
शुभकामनायें ...!!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
वाह!धैर्यवान होना जरूरी होता है...
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
इस उलझन में भी जीते जाना है ...सुंदर अभिव्यक्ति
Thanx to all of you all.....
सुन्दर शब्दों में ढले सुन्दर भाव।
हवा में फैली ..
तुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
अनुनेह मेरा ग्रहण करोगे ...
ईश्वर के प्रति मन में उठे भा
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना,
जीवन तपता मरुथल सा मैंने यह अब जाना ................
गहन भाव लिए बेहतरीन रचना
उम्दा प्रस्तुती
अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना
गहरे अर्थ के साथ बहुत ही अच्छी रचना...
दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
vakai lajabab rachana ....yathrth ki kasauti pr bilkul khara..... badhai Sangita ji
@दर्द मौन हो चला अजेय धैर्य ने ही थाम रखा है मुझे,
सांसो की डोर ने उम्र को बांध रखा है जैसे ,
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
बहुत बढिया!
अनमनी सी दिशाओं में बहती रही हवाओं की मानिंद ,
डूबते उतराते किनारों पर ठहर सकना मुश्किल है अब जाना .............
यथार्थ में जीती हुई उत्कृष्ट रचना ."अनमनी सी" शब्द के प्रयोग ने मन को छू लिया
बहुत कठिन था डूबना , किंतु उसी के बाद
ज्ञात हुआ कितना मधुर, है जीवन का स्वाद
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना.
दिल की गहराईओं से उत्पन्न रचना.
बधाई.
साँसों की इस डोर के सिवा कोई बाँध भी तो नहीं सकता इस जीवन कों इस सत्य कों पहचानना जरूरी अहि ...
Thanx to all of u.
'कलमदान' पर पधार कर आपने उसकी सुन्दरता बधाई..आपका धन्यवाद..
बहुत सुन्दर लेखन है आपका..
kalamdaan
प्रभावशाली रचना.
बहुत ही सुन्दर शब्दों की शृंखला है यह कविता!...सुन्दर भाव!...बधाई!
Thanx to all of you.
गहन विचारों से परिपूर्ण अच्छी प्रस्तुति!
रीते हुए पंथ के एकाकी सफ़र में झोकों की तरह बहना है मुझे,
जीवन के स्वप्नों का जाल कितना उलझ गया है अब जाना,
मन की गहराई से मैंने उर की मादकता को माना ........................... मन की गहराईओं को छूती रचना ..बहुत सुन्दर !
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