देश किन्हीं सीमाओं से घिरे क्षेत्र का नाम नहीं होता,देश तो वहाँ की आवाम से जाना जाता है, संस्कृति का परिचायक होता है ।आजादी के बाद ऐसे ही कुछ विचार थे आम जनता के और जनता नागरिक की तरह सोचने वाले नेता चुनती रही और हारती रही। आज यदि हम अपने भारत को देखें तो वह मात्र नेताओं की अठखेलियों की समर भूमि ही तो है।हर राजनीतिज्ञ यही घोषणा तो करता फिर रहा है कि यदि हमारी पार्टी जीती तो टैक्स कम हो जायेगा ,पेत्त्रोलियम उत्पाद के दामों में कमी की जाएगी,आदि-आदि।नहीं जीते तो फिर इस देश कि आवाम से क्या वास्ता, नेताओं का तो गुजारा हो ही जाता है । कभी-कभी ऐसा लगता है कि क्या हम इस देश के नहीं हो पाए हैं ?बढती अराजकता ,असीमित भ्रष्टाचार ,वोट बैंक कि आढ़ में धर्म के रूप को विकृत करते ये नेता ,यदि देश भक्ति के यही मायने हैं तो फिर क्या कहा जाये ।जनता मात्र वोट कि तरह गिनी जाती है और हर शख्स अपनी कुर्सी के लालच में बिकने को तैयार है , भूखों मरने के हालत हो गए हैं तभी तो सुरक्षा तक दांव पर लगी है ।जहाँ अधिकार है वहां कर्त्तव्य का आभाव है ,क्या यही है भारत के भाग्य में ?हुकूमत का नशा इस तरह सर चढ़कर बोल रहा है कि ये नेता खुद को परमेश्वर मानने लगे हैं।हम पढ़े-लिखे लोग परिचर्चाओं को सुनकर बहस के मुद्दे तलाशते हैं अपने कर्त्तव्य कि इतिश्री कर लेते हैं।
पर अब कुछ समय कि ही बात है ऐसा लगता है थोडा वक्त और लगेगा पर आने वाली पीढ़ी यह सब बर्दाश्त नहीं करेगी ऐसा लगता है ?किसी को तो चाणक्य कि भूमिका निबाहनी होगी और भारत का परचम फहराना होगा ।
पर अब कुछ समय कि ही बात है ऐसा लगता है थोडा वक्त और लगेगा पर आने वाली पीढ़ी यह सब बर्दाश्त नहीं करेगी ऐसा लगता है ?किसी को तो चाणक्य कि भूमिका निबाहनी होगी और भारत का परचम फहराना होगा ।
24 टिप्पणियां:
bikul sahi aur satik lekh hai aapka.
सही लिखा है...
बहुत सही लिखा है आपने।
सादर
ekdam sahi
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपका आभार…
" aaj ka agra "
बहुत सुंदर सार्थक सटीक आलेख ,बेहतरीन अभिव्यक्ति,
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
हर कहानी का अंत लिखा होता है .....
शुभकामनाएँ!
हमारे अपने दौर का संक्षिप्त सार्थक और सुन्दर आकलन .
bilkool nayi peedhi nahi sahegi ...par sawaal to yahi hai kichanakya kaun ho...ek anna dikhe hain ve bhi gheere hue hain sandigdh vyaktitvo se:(
बहुत ही गहन वैचारिक पोस्ट |
नवरात्र के 7दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
भ्रष्टाचार ने देश को खोखला कर दिया। भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार के पद पर सुशोभित है और सम्मान पा रहा है। ऐसे कठिन वक्त में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसे बढावा न दे। चाणक्य हम सब के भीतर ही बैठा है, उसे बाहर निकालें और भ्रष्ट लोगों को शर्मिन्दा करें। जिससे भ्रष्टाचार पर आंशिक रुप से अंकुश लगेगा। भ्रष्टाचार हर युग में रहा है, धन का मोह किसे नही है पर इतना अधिक विकराल नहीं रहा।
shukriya.
मौजूदा हालत पर सटीक टिप्पणी, व्यवस्था परिवर्तन की छटपटाहट नज़र आ रही है आपके आलेख में...इस आग को बचाए रखना है...इस आग को बचाए रखना है....
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
विचारणीय पोस्ट
आभार
मौजूदा हालत काफी गंभीर होती जा रही है. विचारोत्तेजक आलेख.
बहुत विचारणीय और सार्थक आलेख....
BEAUTIFUL POST BASED ON BURNING TOPIC.
THOUGHTFUL LINES . THANKS.
एकदम सटीक....
विचारणीय पोस्ट
सादर.
संगीता जी, बिल्कुल सही कहा आपने।
लेकिन अब बहुत हो गया, कब तक और सहेंगे हम,
परिवर्तन जरूरी है, परिवर्तन के लिये क्राँति,
अब न जागे तो फिर कब जागोगे, जागो सुबह होने वाली है,
फिर शाम को जागे तो जागने से क्या लाभ.....
thanx to all of you.
आपके सरोकार प्रामाणिक और वास्तविक हैं जो सोचने पर विवश करते हैं. बढ़िया पोस्ट.
इसमें कोई शक नहीं कि देश के कर्णधारों को अब जनता की ज़रूरत और अहमियत सिर्फ चुनाव के अवसरों पर ही दिखाई देती है ! चुनाव के बाद का समय वे किन संघर्षों से जूझते हुए बिताते हैं उससे उनका कोई सरोकार नहीं होता ! हमारे देश में देश का आम नागरिक सिर्फ शोषित होने के लिये है उसका कोई अधिकार भी है इसकी किसीको परवाह नहीं है ! विचारपूर्ण आलेख के लिये बधाई !
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