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रविवार, 3 जून 2012

है लगाव जिंदगी से सभी को ,
है ख़याल हुस्न का सभी को;
सुलग रहा है अलाव इश्क का धड़कनों में आज भी ;
यही तो पहचान है जिन्दा होने की दिल की अभी भी ::::::::::::::::::;;


वो चित्रकार आज भी मसरूफ है ज़माने की फ़िक्र में ;
अब भी उकेर रहा है जिंदगी ;
रंगीं कर रहा है जमीं के कैनवास पर ;
मानो की जता रहा हो की गम गुजर जाया करते हैं बीत जाया नहीं करते::::::::::::::::::::::::::::;;;;;;;


मौत कभी जिस्म को आया नहीं करती ,
 धडकनों के थमने से अरमाँ नहीं मरा करते ;
 माना कि  लब खामोश हैं सभी के अभी ;
पर यूँ ही एलान मरा नहीं करते :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::


लहू बहा और जम गया जंग के मैदान में फिर भी ;
वह गलियों में,बाजारों में उतर आया है नारा बनकर;
शोला सा दहका है सर उठाया है हमने फिर अभी ;
ये वो जुनूँ  है जो संगीनों से डरा नहीं करते:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::;  
                                                                                                                           

1 टिप्पणी:

Sadhana Vaid ने कहा…

सुस्वागतम् संगीता ! आप फिर से सक्रिय हो रही हैं ब्लॉग पर बहुत प्रसन्नता हो रही है ! बहुत शानदार धमाके के साथ वापिसी की है ! बहुत सुन्दर लिखा है ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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