बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ,
अपने ही किनारों से दूर अब खुद में ही सिमट चली हूँ.
माना की स्वप्न संजोये थे मैंने भी कुछ अपने वास्ते ,
उन्हें सजाकर जीवन धन जन्मों के पुण्य ले चली हूँ.
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ ..............
पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख,
कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......
बेमाने .........................................
टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ................
34 टिप्पणियां:
पहचाने चेहरों पर
अब अनजाने रंग देख,
कंचन की वेदी पर
कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......
bahut sunder likha hai.
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ...सुंदर भावाव्यक्ति
लिखती रहिए...
टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ......bahut hi gahri abhivyakti
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ................
Bahut Hi Sunder ....Skaratmak Bhav
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
बहुत सुन्दर
बेहतरीन प्रस्तुति... प्रेमदिवस की शुभकामनाएँ ..
बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट |
नकारात्मक ही सही...मगर सुन्दर रचना...
सादर.
टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
निश्चित रूप से सच्चाई को अभिव्यक्त किया है आपने इस रचना के माध्यम से .....! लेकिन नियति के हाथों में तो सभी छले जाते हैं ...!
बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति
MY NEW POST ...कामयाबी...
bahut sunder hriday se nikle bhav.........
sunder shbdon me saji kavita
uttam
badhai
rachana
सुंदर प्रस्तुति ....
बहुत भावपूर्ण रचना !
पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख
कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .....
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं संगीता ! आपकी लेखनी बहुत संवेदनशील और सशक्त होती जा रही है ! शुभकामनायें !
THANX,,,
बहुत सुन्दर रचना,खूबसूरत प्रस्तुति
आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
एक ब्लॉग सबका
आज का आगरा
पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख
कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .....
jabab nahi ... inn pankityon ka
bahut pyari si abhivyakti!
खूबसुरत भाव सुन्दर रचना....
बधाई.....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
बहुत सुंदर रचना !
आभार !
बेहतरीन प्रस्तुति !
सुंदर शब्दों का मिश्रण !
आभार !
बेहतरीन रचना
सादर
vaah sangeeta ji bahut sundar rachna badhaai aur doosri badhaai mere 100va follower banne ke liye bahut bahut badhaai.milna julna hota rahega.
अति सुन्दर अभिव्यक्ति......बधाई..
----हां
जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......
बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ.......
----जीवन का या परिधि का विराम कहां होता है... न जीवन परिधि का... पन्ने भी कभी बेमानी नहीं होते...न हस्ताक्षर... यही तो रह जाते है...मानव के जाने के बाद....
"यदि आप चाहते हैं कि---
मृत्यु के उपरांत
शीघ्र ही संसार आपको भूल न जाय
तो
पढने योग्य श्रेष्ठ रचनाओं की सृष्टि करें
या
वर्णन योग्य श्रेष्ठ कर्म करें "
bilkul sangrhneey rachana lagi ....sangeeta ji apne bahut hi achha likha hai ...sadar badhai.
बेहतरीन प्रस्तुति !
Thanx to all of you.
अच्छी प्रस्तुति...
sunder shavd chayan badiya prastuti ha ye hee duaa hai ise hatasha ke mahoul se lekhan aur prabhavit naa ho.....
बहुत सुंदर
आपकी कविता के प्रत्येक शब्द समवेत स्वर में बोल उठे हैं ।.भाव भी मन को दोलायमान कर गया । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
कष्ट तो यह है की यह 'बीता हुआ ' नहीं है ..यह आज भी उतना ही सच है !
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