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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

भूली बिसरी

कुछ सपने जमाने की दहलीज पर छोड़ आये हैं,
कुछ रिश्तों के चिराग यादों के दरिया में बहा आये हैं.........
न पूछो हश्र उन सपनों का जमाने में ,
किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....
आज तनहा खड़े अपनी छूटी हुई दहलीज को देखतें हैं,
 धूल से लिपटी हुई जमीं पर छूट चुके रिश्तों के साए खोजते हैं..........
 ताश के पत्तों सा ढह चुका सपनों का महल
उसके,उजड़े हुए आँगन में गुम हुए रिश्तों के उलझे हुए धागे,
खोजते हैं ..................... 

30 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न पूछो हश्र उन सपनों का जमाने में ,
किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....समझ सकती हूँ , पूछना क्या !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया।


सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!...

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--

shikha varshney ने कहा…

भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

---सुन्दर.....
अपने अश्कों को हम पलकों में छुपा आये हैं,
अपने गम को हम खुशियों से सजा लाये है।

vidya ने कहा…

बहुत खूब...
शुभकामनाएँ!

prritiy----sneh ने कहा…

dard liye huye kintu ek achhi prastuti.
lohri avum makarsankranti ki shubhkamnayen.

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव से लिखी है रचना !
आभार !

Kailash Sharma ने कहा…

ताश के पत्तों सा ढह चुका सपनों का महल
उसके,उजड़े हुए आँगन में गुम हुए रिश्तों के उलझे हुए धागे,
खोजते हैं ........

...बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं..

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

jo kho jaate hai unhe dhoondhne me bhut taqleef hoti hai
bhut sunder prastuti.

रमेश शर्मा ने कहा…

कविता मे भावो का अनोखा मिश्रण,सार्थक अभिव्यक्ति..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कई बार रिश्तों के इन धागों को सुलझाने में जिंदगी निकल जाती है ...
बहुत खोब लिखा है ...

रचना दीक्षित ने कहा…

रचना का भाव पक्ष बहुत प्रबल है. बधाई.

अवनीश सिंह ने कहा…

क्या बात है !
बहुत खूब

Sadhana Vaid ने कहा…

बड़ी सशक्त रचना है संगीता ! मन के इस धरातल पर कदाचित सबकी पीड़ा एक जैसी ही होती है ! बहुत सुन्दर !

vikram7 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
vikram7 ने कहा…

सुन्दर एंव सशक्त रचना.
vikram7: महाशून्य से व्याह रचायें......

Ramakrishnan ने कहा…

Sangitha Ji,
Beautiful expressive poem-it was a joy to read. Thanks for visiting my blog & leaving a nice comment.Best Wishes & Warm Regards. Have a wonderful year.

amrendra "amar" ने कहा…

waah bahut khoob prastuti

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

Dimple Maheshwari ने कहा…

गुम हुए रिश्तों के धागों को धुंध कर उन्हें फिर से पीरो के एक माला बनाई जाये to क्या बात हो!

Rajput ने कहा…

भावो का अनोखा मिश्रण
सशक्त रचना .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर सशक्त रचना ,बेहतरीन भावों की प्रस्तुति,......
welcome to new post...वाह रे मंहगाई

babanpandey ने कहा…

कर्म का स्वप्न देखने में ही भलाई ... होने की ....सीख सबो ने दी है ...सुंदर पोस्ट ...मेरे भी ब्लॉग पर आने की कृपा करे

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami ने कहा…

सुंदर भावाभिव्क्ति।

Rakesh Kumar ने कहा…

किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....
आज तनहा खड़े अपनी छूटी हुई दहलीज को देखतें हैं,
धूल से लिपटी हुई जमीं पर छूट चुके रिश्तों के साए खोजते हैं....

आपकी प्रस्तुति भावुक कर रही है.
मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा संगीता जी.
नई पोस्ट आज ही जारी की है.

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