कुछ रिश्तों के चिराग यादों के दरिया में बहा आये हैं.........
न पूछो हश्र उन सपनों का जमाने में ,
किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....
आज तनहा खड़े अपनी छूटी हुई दहलीज को देखतें हैं,
धूल से लिपटी हुई जमीं पर छूट चुके रिश्तों के साए खोजते हैं..........
ताश के पत्तों सा ढह चुका सपनों का महल
उसके,उजड़े हुए आँगन में गुम हुए रिश्तों के उलझे हुए धागे,
खोजते हैं .....................
30 टिप्पणियां:
न पूछो हश्र उन सपनों का जमाने में ,
किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....समझ सकती हूँ , पूछना क्या !
बहुत ही बढ़िया।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
सुन्दर प्रस्तुति!...
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
---सुन्दर.....
अपने अश्कों को हम पलकों में छुपा आये हैं,
अपने गम को हम खुशियों से सजा लाये है।
बहुत खूब...
शुभकामनाएँ!
dard liye huye kintu ek achhi prastuti.
lohri avum makarsankranti ki shubhkamnayen.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
बहुत सुन्दर भाव से लिखी है रचना !
आभार !
ताश के पत्तों सा ढह चुका सपनों का महल
उसके,उजड़े हुए आँगन में गुम हुए रिश्तों के उलझे हुए धागे,
खोजते हैं ........
...बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं..
jo kho jaate hai unhe dhoondhne me bhut taqleef hoti hai
bhut sunder prastuti.
कविता मे भावो का अनोखा मिश्रण,सार्थक अभिव्यक्ति..
कई बार रिश्तों के इन धागों को सुलझाने में जिंदगी निकल जाती है ...
बहुत खोब लिखा है ...
रचना का भाव पक्ष बहुत प्रबल है. बधाई.
क्या बात है !
बहुत खूब
बड़ी सशक्त रचना है संगीता ! मन के इस धरातल पर कदाचित सबकी पीड़ा एक जैसी ही होती है ! बहुत सुन्दर !
सुन्दर एंव सशक्त रचना.
vikram7: महाशून्य से व्याह रचायें......
Sangitha Ji,
Beautiful expressive poem-it was a joy to read. Thanks for visiting my blog & leaving a nice comment.Best Wishes & Warm Regards. Have a wonderful year.
waah bahut khoob prastuti
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
गुम हुए रिश्तों के धागों को धुंध कर उन्हें फिर से पीरो के एक माला बनाई जाये to क्या बात हो!
भावो का अनोखा मिश्रण
सशक्त रचना .
बहुत सुंदर सशक्त रचना ,बेहतरीन भावों की प्रस्तुति,......
welcome to new post...वाह रे मंहगाई
कर्म का स्वप्न देखने में ही भलाई ... होने की ....सीख सबो ने दी है ...सुंदर पोस्ट ...मेरे भी ब्लॉग पर आने की कृपा करे
सुंदर भावाभिव्क्ति।
किस तरह झंझोडा है उन्हें,वक्त-ऐ-दरिया के उफान ने.....
आज तनहा खड़े अपनी छूटी हुई दहलीज को देखतें हैं,
धूल से लिपटी हुई जमीं पर छूट चुके रिश्तों के साए खोजते हैं....
आपकी प्रस्तुति भावुक कर रही है.
मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा संगीता जी.
नई पोस्ट आज ही जारी की है.
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