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शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

माँ मुस्कुराती है

आज भी याद आती हैं वो हंसती हुई आँखों के छलकते हुए आंसू ,
वो पुरनम हवाएं,गुनगुनाते नगमें,फूलों से महकता  हुआ मौसम  ,
आज भी याद आतें हैं बहुत सब ,जब भी सपनों में माँ मुस्कुराती है.............
उससे बिछड़े जमाना गुजर गया है ये सच है ,पर
जिंदगी की क़द्र, निभाना रवाजों का,भूली सी कुछ रवायतें ,सहलाना जज्बातों को ,
आज भी वो सपनों में आती है सिखा जाती है ......................
हर मोड़ पर हमें बहारों से मिलवाना उसका ,
हमारा हर बात पर रूठना,और मनाना उसका ,
आज भी कुहासे में हर गूँज उसे ही पुकारती है ,
सुनते ही वो सपनों में आती है सहला जाती है,
आज भी सपनों में माँ आती मुस्कुराती है..................
मसरूफियत हमारी तन्हा रह जाना उसका ,
दर्द की हर रात से मुस्कुराकर गुजर जाना उसका ,
गर्द और काँटों को हमारी राहों से बुहारना उसका,
रातों की परेशानियों को लोरियों से बहलाना उसका,
अपने दामन में छिपा वीराने ,गुलिस्तान सजाना उसका,
आज भी याद हैं वो गुनगुनाते नगमें ,आज भी ख्वाबो में माँ मुस्कुराती है.
मेरे हर बोल में तू है माँ ,हर कहानी तुझसे है,
मेरे हर साज पर गुनगुनाते गीत तुझसे हैं 
मेरी बहारों की हर रवानी तुझसे है ,
वक्त का तूफान का हमसे निगाहें चुराकर गुजर जाता है आज भी ;
 तुझसे बिछड़े जमाना गुजर गया लेकिन आज भी सजदों म़े माँ नजर आती है ,

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

बीता हुआ

                                बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ,
                                अपने ही किनारों से दूर अब खुद में ही सिमट चली हूँ.
                                माना की स्वप्न संजोये थे मैंने भी कुछ अपने वास्ते ,
                                 उन्हें सजाकर जीवन धन जन्मों के पुण्य ले चली हूँ.
                                 बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ ..............
                                पहचाने चेहरों पर अब अनजाने रंग देख,
                                 कंचन की वेदी पर कामनाओं का हवन देख,
                                 स्रजन सपनों का होता दहन देख ,
                                 जीवन परिधि का विराम हो चली हूँ .......
                                 बेमाने .........................................
                                  टूटते भ्रम के भंवर में चकराती रही,
                                  नियति के हाथों अक्सर छली जाती रही ,
                                  आशाओं के संबल से मन की लाचारी को ,
                                   सांसों के बंधन से मन को भी अब मुक्त करने चली हूँ ,
                                   बेमाने पन्नों की हस्ताक्षर हो चली हूँ................               



शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

अस्मिता

मुझसे मायने हर रिश्ते के ,
और मैं किसी की कुछ भी नहीं .......
प्रार्थनाएं, वंदन करती रही ,
मान्यतायें रिवाजों की मैं निभाती रही,
बाबुल का अभिमान बन कर्म की बेदी सजाती रही ..
डोर से रक्षा की आस में नमन सदा किया मैंने ,
वीर को दे दान स्नेह का मैं अकिंचन कुछ भी नहीं...
रहे सदा सुखी सम्पन्न चाँद से अनुग्रह मेरा,
प्रीत की राह में स्नेह दीप सी जलती रही ........
नई आशाओं के उपवन का सृजन सदा रहा अभिप्राय मेरा
इस उपवन की मालिन में अकिंचन कुछ भी नहीं ..
क्रूरता है नियति की ये, व्यर्थ है मेरा समर्पण,
जीवन की चम्पई साँझ में मलिन हो रहा मेरा दर्पण .
मुझसे मायने हर रिश्ते के और में किसी की कुछ भी नहीं...........