क्षितिज के झरोंखो से किरणों के झांकते ही फज़ा रोशन हुई ,
रास्ते मुस्कुराने लगे ,रवि ने समेट ली नर्म कोहरे की चादर ,
दरख्तों के जवां हौसले बुलंद होने को हैं ;
पक्षियों के गीत आँगन मे गूंजने लगे
रहत की रहस्यमय चरमराहट से खेत भी गुनगुनाते है ;
ओस का आँचल ढलका रोशनी के हजार दिए खिलखिला उठे ;
हाँ भोर हो गई : लो भोर हो गई
रास्ते मुस्कुराने लगे ,रवि ने समेट ली नर्म कोहरे की चादर ,
दरख्तों के जवां हौसले बुलंद होने को हैं ;
पक्षियों के गीत आँगन मे गूंजने लगे
रहत की रहस्यमय चरमराहट से खेत भी गुनगुनाते है ;
ओस का आँचल ढलका रोशनी के हजार दिए खिलखिला उठे ;
हाँ भोर हो गई : लो भोर हो गई
7 टिप्पणियां:
स्वागत है आपकी इस नई भोर का .....
स्वागत करें रौशनी के हजार दिए का मुस्कुराकर...
शुभकामनाएँ!!
मैं इस ब्लॉग की फोलोअर हूँ
पर मेरे डैशबोर्ड पर आपकी पोस्ट नहीं दिख रही?
लगता है इसी कारण पिछले पोस्ट नहीं देख पाई|
रौशनी से नहाई धरा ले चली आशा की उडान पर
ओस का आँचल ढलका रोशनी के हजार दिए खिलखिला उठे ;
हाँ भोर हो गई : लो भोर हो गई.
भोर का बहुत सुंदर दृश्य खींचा है. अदभुत प्रस्तुति.
एक सुन्दर नज़्म....
एक सुन्दर नज़्म....
you are special in your style
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