बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,
किसी अपने के खो जाने से यह दुनिया नहीं रुका करती है ,
यही अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हूँ ,
घर के तमाम कोनों में बिखरा पड़ा है वजूद उसका ,
फिर भी जाने कहाँ-कहाँ ढूंढने की कोशिश किये जा रही हूँ ,
हर रहगुजर ,हर मोड़ पर मानो मुस्कुराता हुआ मिल जाएगा वो ,
बार-बार उसे पुकारती गुजरती जा रही हूँ ,
माँ की आँख का तारा था वो मेरे सूत से बंधा था वो ,
बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,
किसी अपने के खो जाने से यह दुनिया नहीं रुका करती है ,
यही अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हूँ ,
घर के तमाम कोनों में बिखरा पड़ा है वजूद उसका ,
फिर भी जाने कहाँ-कहाँ ढूंढने की कोशिश किये जा रही हूँ ,
हर रहगुजर ,हर मोड़ पर मानो मुस्कुराता हुआ मिल जाएगा वो ,
बार-बार उसे पुकारती गुजरती जा रही हूँ ,
माँ की आँख का तारा था वो मेरे सूत से बंधा था वो ,
जाने कैसे गाँठ खुल गई कि आज तक नहीं समझ पा रही हूँ में,
बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,
7 टिप्पणियां:
संगीता जी, बहुत दुखी कर रही है यह रचना...आपका दर्द समझ सकती हूँ...ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और आपको हिम्मत दें|
jo humse dur chala gaya,mana ki wo kbhi na ayega pr
hum sada uski yadon ko sahej kar rakhenge
दुःख का दरिया पर कर तुम हिम्मत से बiहर आ जाओ . इंतजार है ..........
बहुत मार्मिक...
हर सुबह शाम में ढल जाता है
हर तिमिर धूप में गल जाता है
ए मन हिम्मत न हार
वक्त कैसा भी हो
बदल जाता है ….
सुन्दर सृजन ,आभार .
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें.
बचपन से,ही रहा खोजता
ऐसे , निर्मम, साईं को !
काश कहीं मिल जाएँ मुझे
मैं करूँ निरुत्तर,माधव को !
अब न कोई वरदान चाहिए,सिर्फ शिकायत मेरे मीत !
विश्व नियंता के दरवाजे , कभी ना जाएँ , मेरे गीत ! १
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