जिंदगी दर्द के सहरा से गुजरती रही तनहा-तनहा ;
साँस दर साँस उम्र घटती रही यूँ ही तनहा-तनहा :
हंस कर गुजर जाती तो अच्छा होता ,ग़म तो ये है ;
कि हर रत शबनम तरबतर करती रही तनहा-तनहा :
मैंने काटी है सजा किसी और के गुनाहों की ,तब भी गिला नहीं ;
जो मिला हंस कर लिया ,माना कि ,
जो मिला हंस कर लिया ,माना कि ,
समय कम था जिंदगी के पास जितना था हंस कर गुजर गया तनहा-तनहा :
हर तस्वीर बिगड़ती गई सुखनवर बनूँ इस कोशिश में ,
तमाम उम्र इक ख़ुशी के इन्जार में ,,
अश्क तमाम दामन में समेटे खत्म हो गई तनहा-तनहा
13 टिप्पणियां:
--बहुत सुन्दर गज़ल व भाव हैं, बधाई...
--- यदि इसे क्रमवार इस तरह रखा जाय तो और सुन्दर लगेगी....
जिंदगी दर्द के सहरा से गुजरती रही तनहा-तनहा ;
साँस दर साँस उम्र घटती रही यूँ ही तनहा-तनहा :
हंस कर गुजर जाती तो अच्छा था,गम है मगर;
हर रात शबनम तरबतर करती रही तनहा-तनहा :
मैंने काटी है सजा किसी और के गुनाहों की ,
गिला नहीं जो मिला लिया हंसकर तनहा-तनहा :
माना कि,समय कम था जिंदगी के पास लेकिन,
जितना था हंस कर गुजारा है तनहा-तनहा :
हर तस्वीर बिगड़ती गई इक ख़ुशी के इन्तजार में,
अश्क दामन में समेटे, उम्र तमाम हुई तनहा-तनहा :
हंस कर गुजर जाती तो अच्छा था,गम है मगर;
हर रात शबनम तरबतर करती रही तनहा-तनहा
बहुत खूब...पुनः आपके ब्लॉग पर आने की खुशी मिली तनहा तन्हा!!
bahut khoob..
बहुत खूब |
सुन्दर रचना । स्वागत है ।
बहुत सुन्दर !
डॉ.श्याम गुप्त के सुझाव को समर्थन.सुंदर भावपूर्ण रचना.
कृपया संगीत ब्लॉग से वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें.टिप्पणी नहीं हो पा रही है.
सुन्दर प्रस्तुति संगीता जी
bahut hi sundar sangeeta ji ....abhar.
bahut hi sundar sangeeta ji ....abhar.
माना कि,समय कम था जिंदगी के पास लेकिन,
जितना था हंस कर गुजारा है तनहा-तनहा :
sundar ....
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