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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

समय का मरहम

कहते हैं कि वक्त हर जख्म का इलाज होता है पर मैंने तो यही महसूस किया है कि वक्त सभी घावों को सहेजता है ,कि आने वाला समय इन वेदनाओं को याद कर हम सहने के आदि हो जाएँ । यही कुछ आज की स्थितियां बयां करती नजर आ रही हैं । लोकपाल का बदला हुआ स्वरूप उस शख्सियत के समर्थन को हासिल करने में कामयाब हो गया जो उसके खिलाफ था । क्या ये वक्त के तकाजे हैं या कोई मजबूरी ?
              आने वाले समय में क्या  बीता हुआ  जायेगा ,जिससे गरीबों को और गरीबी का अहसास कराया जायेगा ,कि तुम एक रुपए किलो का चांवल, मटर की दाल  की पात्रता रखते हो या मुफ्त में दिया जायेगा ।
                इससे तो अच्छा होता कि उन्हें काम मुहैया कराया जाता और सस्ते में राशन उपलब्ध कराया जाता जिससे कि वे भी स्वाभिमान के साथ जिये न कि सरकार कि कृपाओं पर ।