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शनिवार, 29 सितंबर 2012

बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,

किसी अपने के खो जाने से यह दुनिया नहीं रुका करती है ,
यही अपने दिल को समझाने की कोशिश कर रही हूँ ,

घर के तमाम कोनों  में बिखरा पड़ा है वजूद उसका ,
फिर भी जाने कहाँ-कहाँ ढूंढने की कोशिश किये जा रही हूँ ,

हर रहगुजर ,हर मोड़ पर मानो मुस्कुराता हुआ मिल जाएगा वो ,
बार-बार उसे पुकारती गुजरती जा रही हूँ ,

माँ की आँख का तारा था वो मेरे सूत से बंधा था वो ,
जाने कैसे गाँठ खुल गई कि  आज तक नहीं समझ पा रही हूँ में,


बीते लम्हों को याद कर फिर मुस्कुराने की कोशिश कर रही हूँ ,
कि अपने दामन में फिर सितारे समेटने की कोशिश कर रही हूँ ,

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

जिंदगी  दर्द के सहरा से  गुजरती  रही तनहा-तनहा ;
साँस  दर साँस उम्र घटती रही यूँ ही  तनहा-तनहा :
हंस  कर गुजर जाती तो अच्छा होता ,ग़म  तो ये है ;
कि  हर रत शबनम तरबतर करती रही तनहा-तनहा :
मैंने  काटी  है सजा किसी और के गुनाहों की ,तब भी गिला नहीं ;
 जो मिला हंस कर लिया ,माना कि ,
समय कम था जिंदगी के पास  जितना था हंस कर गुजर गया तनहा-तनहा :
हर  तस्वीर बिगड़ती  गई   सुखनवर बनूँ इस कोशिश में ,
तमाम उम्र  इक ख़ुशी के इन्जार में ,,
अश्क तमाम दामन में समेटे खत्म हो गई तनहा-तनहा