रिश्तों के बारे में जब भी सोचते हैं यादों की सुनहरी झलकियाँ मानस पटल पर उभर आती हैं, ऐसा तभी होता है जब रिश्तों को जिया जाता हो सिर्फ निभाया नहीं जाता हो...हमारे दुखों का कारण साधनों की कमी नहीं है दुखों का कारण रिश्तों को न समझना है.....आज हर इन्सानकिसी न किसी कारण से अवसाद ग्रस्त है क्योंकि हम अपनी जिजीविषा खत्म करते जा रहे हैं ,हमारे जीवन की आतंरिक बनावट अब ऊचाई मापक हो गयी है, हम सिर्फ अनुसन्धान करने लगे हैं, जीवंत हो हर पल अतः जीवन मूल्यों को पुनः निर्धारित करना ,तथा उन्हें नूतनता ,कमनीयता प्रदान करनी होगी ,औरों से,
अपेक्षा न रख अपना मूल्यांकन करें की हमारे करने के लिए क्या है ?जितना ऊंचा उठेंगे उतने एकाकी होते जायेंगे उंचाई के साथ-साथ विस्तार भी जरूरी है किसी को साथ लें या किसी के संग चलें. संवेदनशीलता साथसाथ सपनों के संसार को भी मूर्त रूप दें .
अनुसन्धानकरते हुए मानव धर्मं की अनुभूती भी करें और फिर रिश्तों की महक में खो जाएँ........................